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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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जीवों का वध करने पर पाप निश्चित रूप से होता है तथा पाप से दुर्गति के दुख प्राप्त होते हैं -
जहाँ जीवध होय लगार नहीं मारा उपजै निराधार । पाप सही दुर्गति दुख देय, यात दयाहीन तप खेय॥'
अत: जीववध एवं दयारहित तप निषेध्य है। यज्ञ में पशुबलि (हिंसा ) का निषेध करने के लिए कवि पशु की ओर से कथन करता है -
कहै पशु दीन सुन यज्ञ के करैया मोहि होमत हुताशन में कौन सी बड़ाई है। स्वर्गसुख में न चहौं “देहु मुझे यों न कहौं, घास खाय रहों मेरे यही मन भाई है॥ जो तू यह जानत है वेद यौं बखानत है अग्य जलौ जीव पावै स्वर्ग सुखदाई है। डारे क्यों न वीर यामें अपने कुटुम्ब ही कौं,
मोही जनि जारे जगदीश की दुहाई है। 23. सप्तव्यसन निषेध :- जुआ खेलना, मांस पक्षण, मद्यपान, वेश्यासेवन, शिकार, चोरी और परस्त्री-रमण - इन सात व्यसनों का निषेध करते हुए भूधरदास कहते हैं -
जुआ खेलन मांस मद वेश्या विसन शिकार ।
चोरी पररमनी - रमण सातों पाप निवार ॥ श्री गुरु शिक्षा सांभलै, (ज्ञानी) सात व्यसन परित्यागो रे।
ये जग में पातक बड़े (ज्ञानी) इन मारग मत लागो रे ।।" 1. पार्श्वपुराण, कलकत्ता , भूधरदास, पृष्ठ 62 2. जैनशतक, पूधरदास, छन्द 47 3. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 50 4. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूघरदास, पृष्ठ 846