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एक समालोचनात्मक अध्ययन
"होनहार सोई विधि होय, ताहि पिटाय सकै नहि कोय।" वास्तव में होनहार दुर्निवार है -
कैसे कैसे बली भूप भू पर विख्यात भये, बैरीकुल काँपै नेकु भौंह के विकार सो। लंघे गिरि-सायर दिवायर-से दि जिनों, कायर किये हैं भट कोटिन हुँकार सों। ऐसे महामानी मौत आये ह न हार मानी, क्यों ही उतरें न कभी मान के पहार सों। देवसौ न हारे पुनि दानो सौं न हारे और,
काहूसौं न हारे एक हारे होनहार सौं 1. काल सामर्थ्य - मृत्यु से बचने के लिए अनेक उपाय करने पर भी मृत्यु नहीं छोड़ती -
लोहमई कोट केई कोटन की ओट करो, काँगुरेन तोप रोपि राखो पट भेरिके। इन्द्र चन्द्र चौंकायत चौकस है चौकी देह चतुरंग चमू चहुँ ओर रहो घेरिकै॥ तहाँ एक भोहिरा बनाय बीच बैठो पुनि, बोलौ मति कोऊ जो बुलावै नाम टेरिकै। ऐसे परपंच पाँति रचो क्यों न भाँति भाँति,
कैसे हून छोरै जम देख्यों हम हेरिकै ।' मृत्यु के आने पर सम्पूर्ण धन-धाम, काम, ऐश्वर्य आदि ज्यों के त्यों पड़े रह जाते हैं -
1 पार्श्वपुराण,कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 1, पृष्ठ 8 2. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 72 3. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 73