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________________ 408 महाकवि भूधरदास : . पूर्वकर्मानुसार फलप्राप्ति :- संसारी व्यक्ति पूर्व में किये गये कर्मों के अनुसार ही फल प्राप्त करता है - संसारी जन अपनी बार । पूरब उदै करै अनुसार ।।' ५. पूर्वपापोदय में धैर्यधारण का उपदेश :- कवि पूर्व-कर्मोदय के अनुसार फलप्राप्ति मानते हुए अशुभ (असाता) कर्म के उदय में प्राप्त दुःखों को समतापूर्वक सहने की प्रेरणा देता है - आयौ है अचानक भयानक असाता कर्म, ताके दूर करिवे को बलि कौन आह रे। जे जे मन भाये ते कमाये पूर्व पाय आप, तेई अब आये किंज उदैकाल लह रे॥ एरे मेरे वीर ! काहे होत है अधीर यामैं, कोऊ को न सीर तू अकेलो आप सह रे । भय दिलगीर कछू पीर न विनसि जाय, ताहीते सयाने ! तू तमाशगीर रह रे॥' इसी प्रकार मृत्यु का भय एवं सुख की आशारूप दुःख के दावानल से। बचने का उपाय भी धैर्यधारण करना ही है . अन्तक सौं न छूटै निहवै पर, मूरख जीव निरन्तर धूजे। चाहत है चित मैं नित ही सुख होय न लाभ मनोरथ पूजै ॥ तौ पर मूढ़ बँध्यों भय आस, वृथा बाहु दुःखदावानल भूजै। छोड़ विचच्छन ये जड़ लच्छन धीरज थारि सुखि किन हूजै ॥' 10. होनहार दुर्निवार :- जो होना होता है, होकर ही रहता है। उसे कोई मिटा नहीं सकता - 1 पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूघरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 29 2. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 71 3. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 74
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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