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________________ रमालोचनात्मक माया 403 पूर्व में श्रावक के पाक्षिक, नैष्ठिक और साधक - ये तीन भेद बतलाये गये हैं, उनमें जहाँ पाक्षिक श्रावक आठ मूलगुणों का पालन व सप्त व्यसन का त्याग करता है तथा नैष्ठिक श्रावक उपर्युक्त ग्यारह प्रतिमाओं का पालन करता है; वहाँ साधक श्रावक अन्तिम समय में अपनी सम्पूर्ण शक्ति को संभाल करके सल्लेखना भी धारण करता है। सल्लेखना धारण करने से व्रत-नियम, संयम आदि सब विशाल फल देने वाले हो जाते हैं।' सल्लेखना या समाधिमरण - सल्लेखना या समाधि नाम निःकषाय भाव का है, शान्त परिणामों का है। कषायरहित शान्त परिणामों से मरण होना समाधिमरण है । “जब व्यक्ति उपसर्ग, दर्भिक्ष, जरा (बढ़ापा) तथा रोग प्रतिकार (उपाय-उपचार) रहित असाध्य दशा को प्राप्त हो जाये अथवा चकार से ऐसा ही कोई दूसरा प्राणघातक अनिवार्य कारण उपस्थित हो जाय तब धर्म की रक्षा-पालना के लिए जो देह का विधिपूर्वक त्याग है, उसको सल्लेखना या समाधिमरण कहते हैं। मरण काल उपस्थित होने पर काय एवं कषाय को कृश करते हुए, भोजन वगैरह का त्याग कर आत्मध्यान द्वारा नि:कषायभाव अर्थात् समताभाव की प्राप्तिपूर्वक देहत्याग करना समाधिमरण है और इस क्रिया को करने वाला साधक श्रावक है । सम्पूर्ण व्रतों का पालन करते हुए सल्लेखना करने वाला साधक श्रावक परलोक में सोलहवें (अच्युत) स्वर्ग तक उत्पन्न हो जाता है।' इस प्रकार सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञानपूर्वक सकलचारित्ररूप मुनिधर्म का पालन करने से मोक्ष-पद प्राप्त होता है तथा देशचारित्ररूप गृहस्थधर्म का पालन करने से स्वर्ग सुख प्राप्त होता है। 1. अन्त समय सल्लेखना, को शक्ति संभालो जी। जासौं व्रत संजम सबै, ये फल देहि विशालो जी ॥ पार्श्वपुराण,कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 9, पृष्ठ 87 2. उपसर्गे दुर्भिने जरसि रुजायां च निप्रतीकारे । धर्माय तनु विमोचनमाहुः सल्लेखनामार्याः ॥ रत्नकरण्डश्रावकाचार,समन्तभद्राचार्य,श्लोक 122 3. अब इन बारह व्रतन को,लिखो लेश विरतन्त। जिनको फल जिनमत कहो, अच्युव स्वर्ग पर्यन्त ।। पार्श्वपुराण,कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 9, पृष्ठ 86 4. याते सधैं मुक्ति पद खेत, गिरही धर्म सुरग सुख देत ॥ पाश्वेपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 9, पृष्ठ 86
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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