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________________ 402 महाकवि भूधरदास : 10. अनुमति त्याग प्रतिमा :- जो पाप के मूल गहस्थ के कार्य हैं उनको करने की भूलकर भी अनुमति नहीं देता है, भोजन के समय बुलाने पर जाता है। वह सुख देने वाली दसवीं (अनुमतित्याग) प्रतिमा है।' 11. उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा :- ग्यारहवीं प्रतिमा श्रावक का सर्वोत्कृष्ट अन्तिम दर्जा है। ये श्रावक दो प्रकार के होते हैं - क्षल्लक तथा ऐलक । इस प्रतिमा की उत्कृष्ट दशा ऐलक होती है । इसके आगे मुनिदशा हो जाती है। जो गुरु के पास जाकर व्रत ग्रहण करता है, घर को छोड़कर मठ या मंडप में रहता है, शरीर पर एक वस्त्र (चादर) तथा लंगोटी रखता है। अपने पास पीछी, कमंडलु तथा (भोजन के लिए) एक भिक्षापात्र (कटोरा) रखता है। दो अष्टमी व दो चतुर्दशी - इन चारों पर्वो में उपवास करता है, निर्दोष उद्दिष्ट आहार रहित भोजन लेता है । जिसको लाभ और अलाम में राग एवं द्वेष नहीं होता। जो सिर, दाड़ी, मूंछों के बाल उचित समय पर उतरवाता है, किंचित भी बाल नहीं रखता है तथा तप का आचरण, आगम का अभ्यास आदि शक्ति के अनुसार गुरु के पास रहकर करता है। यह सब क्षुल्लक श्रावक का आचरण है । दूसरा ऐलक इससे अधिक पवित्र होता है। जो कमर में एक लंगोटी मात्र रखता है। जिनके पास पीछी और कमंडलु होता है। जो विधिपूर्वक बैठकर पाणिपात्र अर्थात् हाथरूपी पात्र में आगम के अनुसार भोजन (आहार) ग्रहण करता है, अपने द्वारा केशलोंच करता है तथा अतिधीर होकर सर्दी गर्मी आदि सहन करता है, वह ऐलक श्रावक कहलाता इस प्रतिमा के धारी श्रावक ऐलक और क्षुल्लक मुनि के समान नवकोटिपूर्वक उद्दिष्ट आहार के त्यागी व घर कुटुम्ब से विरत होते हैं। देशचारित्ररूप पंचम गुणस्थान में उपर्युक्त जिन ग्यारह प्रतिमाओं का उपदेश है; वे प्रतिमाएँ प्रारम्भ से उत्तरोत्तर अंगीकार की जाती हैं अर्थात् पहले धारण की हुई प्रतिमाओं के नियम या दशा आगे की प्रतिमाओं के धारण में छूटती नहीं है; अपितु वृद्धि को ही प्राप्त होती है। पहली से छठवी प्रतिमा तक धारण करने वाला जघन्यव्रती श्रावक, सातवीं से नौवीं प्रतिमा तक धारण करने वाला मध्यम व्रती श्रावक तथा दसवीं व ग्यारहवीं प्रतिमाधारी उत्कृष्ट व्रती श्रावक कहलाता है। 1 से 3 तक पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 9. पृष्ठ 88
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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