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एक समालोचनात्मक अध्ययन
इस प्रकार उपर्युक्त बारह व्रतों का निरतिचार पालन करना, व्रत प्रतिमा हैं । इनका पालन करने वाला व्रती श्रावक कहलाता है।
3. सामायिक प्रतिमा :- प्रातः, दोपहर और सायं इन तीनों काल पाँच अतिचार (काययोग- दुष्प्रणिधान, वाग्योगदुष्प्रणिधान, मनोयोगदुष्प्रणिधान, अनादर और स्मृत्यनुपस्थान) रहित सामायिक करने वाला तथा शत्रु मित्र को एक समान मानने वाला मनुष्य ही तीसरी (सामायिक) प्रतिमाधारी है । '
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4. प्रोषध प्रतिमा :- जो महीनें में दो अष्टमी और दो चतुर्दशी - इन चार पर्वो में आरम्भ छोड़कर मन को रोककर प्रोषधवत (आहार आदि का त्याग ) धारण करता है तथा उत्कृष्टरूप से सोलह पहर तक शुभ ध्यान करता है, वही चौथी (प्रोषध) प्रतिमावाला है।
5. सचित्तत्याग प्रतिमां :- जो दल, फल, कंद, बीज आदि अनेक हरितकार्यों का त्याग करता है, राग छोड़कर प्रासुक जल पीता है, वह (पाँचवी प्रतिमावाला) सचित्तत्यागी बड़ा भाग्यवान है ।
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6. दिवामैथुनत्याग प्रतिमा जो दिन में मैथुन सेवन का त्याग करता है, मन-वचन-कायपूर्वक दृढ़ शील धारण करता है, वह धीर छठवीं (दिवामैथुनत्याग) प्रतिमाधारी जधन्य श्रावक हैं।'
7. ब्रह्मचर्य प्रतिमा : जो स्त्री को सब प्रकार से हमेशा के लिए छोड़ देता है, सदा मन-वचन-काय, कृत- कारित अनुमोदना - इन नौ बाद सहित शील व्रत का पालन करता है तथा कभी कामकथा में आसक्त नहीं होता है, वह सातवीं (ब्रह्मचर्य) प्रतिमाधारी है।
8. आरम्भ त्याग :- जो सब व्यापार आदि का व्यवहार छोड़कर मदरहित निरारम्भ वर्तता है तथा दिन-रात हिंसा से भयभीत रहता है, वह पवित्र आठवीं (आरम्भ-त्याग) प्रतिभावाला हैं । "
1 से 2 तक पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 9 पृष्ठ 87
3 से 7 तक पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 9, पृष्ठ 88
9. परिग्रह त्याग प्रतिमा :- जो समस्त परिग्रह का त्याग करके बिना राग के उचित वस्त्रादि रखता है, वह नौवीं (परिग्रहत्याग) प्रतिमाधारी मध्यम श्रावक है।