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महाकवि भूधरदास :
तीन गुणवत :- दिग्वत, देशव्रत और अनर्थदण्डव्रत - ये तीन गुणवत
दिग्व्रत :- अवधि का प्रमाण करके दशों दिशाओं में आने जाने की सीमा निश्चित करना तथा प्राण-पर्यन्त उसके बाहर पैर न रखना अर्थात् गमन न करना दिग्व्रत है।'
देशव्रत :- दशों दिशाओं में भी एकदेश (आंशिक) समय की मर्यादापूर्वक वन, नगर, नदी, आदि के लिये नित्य गमन करने का प्रमाण करना, देशव्रत है।
अनर्थदण्डवत :- जहाँ अपना कोई स्वार्थ (प्रयोजन) न हो तथा अपार पाप उत्पन्न होता हो, वह अनर्थदण्ड है। उसके पाँच भेद अपध्यान, पापोपदेश, प्रमादचर्या, हिंसादान, दुःश्रुति है। उन सबका त्याग अमर्थदण्डवत है।'
चार शिक्षावत :-सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोग परिमाणव्रत और अतिथिसंविभागवत - ये चार शिक्षाव्रत हैं।
सामायिक :- एकान्त स्थान में आर्त-रौद्र ध्यान छोड़कर हृदय में शुभ भावनापूर्वक सामायिक की विधि का आदर करना सामायिक (शिक्षावत) है।'
___ प्रोषधोपवास :- एक महिने में दो अष्टमी और दो चतुर्दशी - इन चार पर्वो में घर का सब आरम्भ छोड़कर चार प्रकार के भोजन का त्याग करना, प्रोषधोपवास है।
भोगोपभोगपरिमाणवत :- भोजन, पानी आदि जो वस्तुएँ एक बार भोगने में आती हैं; वह भोग है तथा स्त्री, आभूषण आदि जो वस्तुएँ बार-बार भोगने में आती हैं; वह उपभोग है। इन भोग- उपभोग की वस्तुओं का समय का प्रमाण करके भोगने का नियम करना, भोगोपभोगपरिमाणवत है।
अतिथिसंविभागवत :- उत्तम अतिथियों (मुनिराजों ) को हमेशा मान बड़ाई का त्याग कर हृदय में उनके प्रति श्रद्धा धारण करके चार प्रकार आहार औषधि, ज्ञान, अभय का दान देना, अतिथिसंविभागवत है।'
1 से 7 तक पार्श्वपुराण, कलकत्ता, पूधरदास, अधिकार 9, पृष्ठ 87