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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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इस प्रकार पाँच उदुम्बर फल एवं मधुमद्य-मांसरूप तीन मकार तथा सात व्यसन का त्याग कर उनके दोषों को दूर करना पहली दर्शन प्रतिमा है - पंच उदंबर फल कहे, मधु मद मांस मकार ।
इनके दूषण परिहरो, पहली प्रतिमा धार ।।'
2. व्रत प्रतिमा
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पाँच अणुव्रत, तीन गुणवत तथा चार शिक्षाव्रतों का अतिचार- रहित निर्दोष पालन करना च प्रतिमा है...
पाँच अणुव्रत गुणवत तीन शिक्षाव्रत चारों मलहीन ॥ बारह व्रत धारें निर्दोष | यह दूजी प्रतिमा व्रत पोष ॥
पाँच अणुव्रत :- अहिंसाणुव्रत, संत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत परिग्रहपरिमाणाणुव्रत, ये पाँच अणुव्रत हैं।
अहिंसाणुव्रत :- ( त्रस जीवों की हिंसा न करना) जो नित्य मन-वचन-काय से एवं कृत- कारित अनुमोदना से त्रस जीवों को दुःख नहीं देता है, वह प्रथम अहिंसा अणुव्रत है।
सत्याणुव्रत :- (स्थूल झूठ न बोलना) सब दोषों के निवास रूप झूठ वचन नहीं बोलना तथा हित मित प्रिय वचन बोलना दूसरा सत्य अणुव्रत है।' अचार्याणुव्रत : किसी दूसरे का भूमि पर पड़ा हुआ, भूला हुआ, बिसरा हुआ, जीवन को दुःख देने वाला धन बिना दिये नहीं लेना, तीसरा अचौर्य अणुव्रत है।'
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ब्रह्मचर्याणुव्रत :- अपनी ब्याही स्त्री में सन्तोष करना तथा महान दोष उत्पन्न करने वाली परस्त्री का त्याग करना, चौधा ब्रह्मचर्य अणुव्रत है ।
परिग्रहपरिमाण - अणुव्रत :- धन, धान्य, सोना आदि परिग्रह की सीमा निश्चित करना, पाँचवा परिग्रह परिमाण अणुव्रत है। यह व्रत तृष्णारूपी नागिन को वश में करने वाला महान मंत्र है।
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1 व 2 पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 9, पृष्ठ 86
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से 6 तक पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूषरदास, अधिकार 9, पृष्ठ 87