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________________ 398 महाकवि भूधरदास : कामी काज अकाज मैं , होहै अंध अविवेक। मदन मत मदमत्त सम, जरो जरो यह टेव ॥ पिता नीर पर से नहीं, दूर रहै रवि यार। ता अंबुज में मूढ़ अलि, उरझि मरै अविचार ॥ त्यों ही कुविसनरत पुरुष, होय अवशि अविवेक । हित अनहित सौचैं नहीं, हिये विसन की टेक ॥' परनारी-सेवन को महान पाप मानते हुए वे लिखते हैं - परनारी सम पाप न आन परभव दुख इहि भव जस हान ॥ इस ही वांछा सों अघ भरे। रावण आदि नरक में परे। एक-एक व्यसन का सेवन करने वालों के नाम व व्यसन का परिणाम - पांडवों के राक. युधिष्ठिर ने अ. II. 14-[ रूपस के लेप से सब कुछ खो दिया । राजा बक ने मांस खाकर बहुत कष्ट उठाये, यादव बिना जाने पूछे मद्यपान कर जल मरे, चारूदत्त ने वेश्या व्यसन में फँसकर बहुत दुःख भोगे। राजा ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती शिकार के कारण, श्रीभूति ब्राह्मण अदत्त ग्रहण चोरी में रति के कारण तथा रावण परस्त्री में आसक्त होकर नरक में गया। जब एक-एक व्यसन का सेवन करने वालों की यह दुर्दशा हुई तो सातों व्यसनों का सेवन करने वालों की क्या गति होगी ? 1. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 1, पृष्ठ 5 2. पार्श्वपुराण, कलकता, भूधरदास, अधिकार 1, पृष्ठ 5 3. (क) प्रथम पाण्डवा भूप,खेलि जुआ सब खोयौ । मांस खाय मक राय, पाय विपदा बहु रोयौ ॥ बिन जाने मदपान जोग, जादौंगन दी। चारुदत्त दुख सह्यौ, वैसवा विसन अरुज्झे ॥ नृप ब्रह्मदत्त आखेट सौं, द्विज शिवभूति अदत्तरति । पररमनि राचि रावन गयो, सातौं सेवत कौन गति ।। जेनशतक, भूधरदास, छन्द 61 (ख) पाण्डव आदि दुखी भये, (जानी) एक व्यसन रति मानी रे। सातनसों के शठ रचे, (शानी) तिनकी कौन कहानी रे॥ पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूघरदास, अधिकार 9, पृष्ठ 3
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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