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महाकवि भूधरदास :
(ग) नैतिक विचार दार्शनिक एवं धार्मिक विचारों की तरह भूधरदास द्वारा वर्णित नैतिक विचार भी महत्त्वपूर्ण हैं। अत: उनकी चर्चा अभिप्रेत है । भूधरदास ने अपने साहित्य को हृदयग्राही एवं मार्मिक बनाने के लिए अनेक नीतियों का उल्लेख किया है। कई स्थानों पर नीतिवर्णन कथानक से सम्बद्ध होता हुआ निष्कर्षप्रद (सिद्धान्तपरक) एवं उपदेशपरक दृष्टिगत होता है। कवि द्वारा उल्लिखित नैतिक विचार अत्यन्त मर्मस्पर्शी एवं हृदयग्राही है; जिनकी उपयोगिता आज भी असंदिग्ध है ।भूधरसाहित्य में वर्णित कुछ प्रमुख नैतिक विचार निम्नांकित हैं -
1. सज्जत-दर्जन गान :. सज्जन और दुर्जन- दोनों का अपना अपना स्वभाव होता है। जिस प्रकार विषधर वक्रचाल कभी नहीं छोड़ता और हंस कभी वक्रता ग्रहण नहीं करता - .
यों सुख निबसै बांधव दोय। निज निज टेव न टारे कोय। वक्रचाल विषधर नहिं तजै। हंस वक्रता भूल न भजे ॥'
सज्जन और दुर्जन एक ही गर्भ से उत्पन्न होते हैं। जैसे लोहे से बना कवच रक्षा करता है और लोहे से बनी तलवार देह का नाश करती है -
उपजे एकहि गर्भसों, सज्जन दुर्जन येह।
लोह कवच रक्षा करै, खाड़ो खंडे देह ।।' दुर्जन चाहे कितना ही कष्ट दे, उससे सज्जन के सद्स्वभाव में किसी प्रकार का विकार नहीं आता; अपितु और अधिक निखार आता है, जिस प्रकार दर्पण राख के द्वारा और अधिक उज्ज्वल हो जाता है।
दुर्जन दूखित सन्त को, सरल सुभाव न जाय।
दर्पण की छवि छारसों, अधिकर्हि उज्जवल थाय॥ 1. दुर्जन को विश्वास जे, करि है नर अविचार।
ते मंत्री मरुभूति सम, दुख पावै निरधार ।। यह सुनि दुष्ट संग परिहरो, सुखदायक सत्संगति करो ॥
पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूषरदास, अधिकार 1, पृष्ठ 5 2 व 3 पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 1, पृष्ठ 5 4. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 1, पृष्ठ 7