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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 391 का भव्य प्रासाद खड़ा होता है। अत: सच्चा गृहस्थ मुनि बनने की भावनापूर्वक गृहस्थधर्म का पालन करता है। जैन गृहस्थ के आठ मूलगुण होते हैं - हिंसादि पाँच पापों के एकदेश त्याग से होने वाले अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का एकदेश पालन तथा मद्य, मांस, मधु का सर्वथा त्याग। उत्तरकाल में आठ मूलगुणों में पाँच अणुव्रतों के स्थान पर पाँच क्षीरिफल या उदुम्बर फलों के त्याग को ले लिया गया। श्रावक के तीन भेद हैं - पाक्षिक नैष्ठिक और साधक । जो एकदेश से हिंसा का त्याग करके श्रावक धर्म को स्वीकार करता है, उसे पाक्षिक श्रावक कहते हैं। जो निरतिचार श्रावक धर्म का पालन करता है उसे नैष्ठिक श्रावक कहते हैं और जो देशचारित्र को पूर्ण करके अपनी आत्मा की साधना में लीन हो जाता है; उसे साधक श्रावक कहते हैं। अर्थात् प्रारम्भिक दशा का नाम पाक्षिक है, मध्यदशा का नाम नैष्ठिक है और पूर्णदशा का नाम साधक है । इस तरह अवस्था भेद से श्रावक के तीन भेद किये गये हैं। इनमें पाक्षिक श्रावक उपर्युक्त आठ मूलगुणों का पालन करता है, रात्रि में भोजन नहीं करता है, अनछना जल काम में नहीं लेता है, जुआ आदि सप्त व्यसनों का त्यागी होता है तथा सच्चे देव- शास्त्र- गुरु का भक्त होने से प्रतिदिन देवपूजा, गुरूपासना, स्वाध्याय, संयम तप और दान रूप षट् आवश्यक कार्यों को करता है। नैष्ठिक श्रावक के ग्यारह दर्जे हैं, जिन्हें 11 प्रतिमाएँ कहते हैं। भूधरदास ने इनका विस्तृत वर्णन किया है जो निम्नलिखित है - 1. मद्यमांसमधुत्यागैः सहाणुव्रतपञ्चकम्।। अष्टोमूलगुणानाहुगृहिणां श्रमणोत्तमाः ॥ रलकरण्डश्रावकाचार,समन्तभद्राचार्य, श्लोक 66 2. पिप्लोदुम्बरप्लक्षवट फ्लान्यदन् । हन्त्याणि वसान् शुष्काण्यपि स्वं रागयोगतः ॥ सागरधर्मामृत, पं. आशाघर, श्लोक 13 3. जैनधर्म, पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, पृष्ठ 198- 199 4. जैनशतक, भूधरदास, पद्य 48 एवं 49
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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