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महाकवि भूधरदास : अवमोदर्य ( ऊनोदर) - भूख से तीन चौथाई, आधा, चौथाई, उससे भी आधा, एक ग्राम अथवा एक कण भी कम खाना अवमोदर्य ( ऊनोदर ) है। यह आलस्य को दूर करने वाला है।'
तपरिसंख्यामा - जसप्रकार की प्रतिज्ञा भोजन ग्रहण करने के पहले कर ली.जाती है, वैसी प्रतिज्ञा मिलने पर ही भोजन ग्रहण करना अर्थात् विशेष प्रतिज्ञापूर्वक भोजन लेना व्रतपरिसंख्यान है। यह आशारूपी व्याधि को दूर करने वाला है।
रसपरित्याग - मीठा, खारा आदि रसों को छोड़कर नीरस भोजन लेना, रसपरित्याग है । यह इन्द्रियों के मद को नाश करने वाला नियम है।
विविक्तशय्यासन • शून्यगृह, पर्वत, गुफा, श्मशान, पुरुष-स्त्री-नपुसंक से रहित अन्य कोई स्थान में सोना, उठना, बैठना आदि विविक्तशैय्यासन है। यह ध्यान की सिद्धि का कारण है।
कायक्लेश - मुनिराज गर्मी के समय पर्वत के शिखर पर, वर्षा के समय वृक्ष के नीचे तथा शीतकाल में नदी के किनारे पर विराजते हैं, यह कायक्लेश है । इस तप को करने से मुनि सहनशील होते हैं।'
इसप्रकार ये छह बहिरंग तप हैं 1 छह अंतरंग तपों का स्वरूप निम्नलिखित
प्रायश्चित - प्रमादवश लगे हुए दोषों का आचार्य के कहे अनुसार शोधकर छोड़ना प्रायश्चित तप है।
विनय - जो दर्शन-ज्ञान चारित्रवान साधु गुणों में अधिक हैं, उनकी विनय करना सुख देने वाला विनय तप है।'
वैयावृत्य - जो बाल, वृद्ध रोगादि से पीड़ित मुनि हैं, अपने संयम का पालन करते हुए भी उनकी सेवा करना आगमानुसार वैयावृत्य है।'
स्वाध्याय · शक्ति के अनुसार सम्पूर्ण गुणों के स्थानभूत परमागम का अभ्यास परमोत्तम स्वाध्याय तप है । इससे सभी संशय मिट जाते हैं।'
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1. से 9. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूघरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 31