SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 405
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 373 छह आवश्यक और सात शेष गुण - मुनिराज सामायक करते हैं, स्तुति बोलते हैं, जिनेन्द्र भगवान की वन्दना करते हैं, शरीर की ममता छोड़ते हैं अर्थात् कायोत्सर्ग करते हैं, तथा स्वाध्याय करते हैं - इसप्रकार छह आवश्यक कर्मों में निरत रहते हैं। वे वीतरागी साधु कभी स्नान नहीं करते, दाँतों की सफाई नहीं करते, शरीर को ढकने के लिए वस्त्र नहीं रखते, रात्रि के पिछले प्रहर में एक करवट भूमि पर कुछ देर शयन करते हैं, दिन में केवल एक बार तथा खड़े रहकर अपने हाथ में रखकर थोड़ा सा आहार लेते हैं, और केशलोंच करते हैं - इस प्रकार इन सात अन्य गुणों का भी पालन करते हैं। मुनिराज (साधु) उपर्युक्त पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच इन्द्रियजय, छह आवश्यक और सात शेष गुण - इन 28 मूलगुणों का पालन करते हैं अर्थात् ये 28 मूलगुण साधुओं के आवश्यक लक्षण हैं। बारह भावनायें - अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्त्रव, संवर, निर्जरा, लोक बोधिदुर्लभ और धर्म - ये बारह भावनायें हैं। भूधरदास ने इनका विस्तृत विवेचन किया है। इस विवेचन में स्थूल और सूक्ष्म दोनों रूप दृष्टिगत होते हैं। इन दोनों दृष्टियों से उनके द्वारा वर्णित बारह भावनाओं का स्वरूप निम्नांकित अनित्य भावना - अनित्य भावना में एक ओर भूधरदास सभी संयोगों का प्रतिनिधि शरीर को मानकर उसके वियोग अर्थात् मरण को अनिवार्य बतलाते हुए कहते हैं राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार। मरना सबको एक दिन, अपनी अपनी बार ॥ दूसरी ओर वे द्रव्यस्वभाव की नित्यता का ज्ञान कराते हुए पर और पर्याय को अनित्य मानकर तन-धन आदि सभी को कालरूपी अग्नि का ईंधन प्ररूपित्त करते हैं1. भूधरदास, पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 4, पृष्ठ 30
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy