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________________ 374 द्रव्य सुभाव बिना जगमोहि, पर ये रूप कछू थिर नाहिं । तन धन आदिक दीखे जेह काल अगनि सब ईंधन तेह।' अशरण भावना इसी प्रकार अशरण भावना में एक ओर वे कहते हैं कि शरीर का वियोग होने पर कोई रोक नहीं सकता अर्थात् सब अशरण हैं - दल बल देवी देवता माता पिता परिवार । मरती बिरियाँ जीव को कोई न राखनहार ॥ तो दूसरी ओर कहते हैं कि संसार में निरन्तर भ्रमण करते हुए जीव को निश्चय से स्वयं तथा व्यवहार से पंच परमेष्ठी शरण हैं । महाकवि भूधरदास : भव वर भ्रमत निरन्तर जीव, याहि न कोई शरन सदीव | व्योहारै परमेठी जप निचै शरन आपको आप । ' - संसार भावना सम्पूर्ण संसार दुःखी है, निर्धन धन के बिना और धनवान तृष्णा (अधिक संग्रह) की इच्छा के कारण दुःखी है दाम बिना निर्धन दुखी, तिस्नावश धनवान । कहीं न सुख संसार में, सब जग देख्यो छान ॥ सम्पूर्ण संसार असार एवं मोक्षमार्ग से विपरीत हैं सूर कहावै जो सिर देय । खेत तजै सो अपयश लेय ॥ इस अनुसार जगत की रीत सब असार सब ही विपरीत ॥ - एकत्व भावना जीव अकेला उत्पन्न होता है और अकेला ही मरता है, इसप्रकार वास्तव में उसका सगा साथी कोई नहीं हैं आप अकेला अवतरै, मरै अकेला होय । यों कबहुँ इस जीव का साथी सगा न कोय ॥ 1. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार ? पृष्ठ 64 2. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 7, पृष्ठ 30 3. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 7, पृष्ठ 70 4. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 300 5. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 7, पृष्ठ 64 6. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 30 H
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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