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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन भूधरदास देव, शास्त्र, गुरु, धर्म- इनको संसार में महान रत्न मानते हैं तथा इनको परख (पहिचान) कर प्रमाण करने में मनुष्यभव की सार्थकता समझते हैं। जो व्यक्ति इनकी परख जानते हैं वे नेत्रवान् हैं। जो नहीं जानते, वे अज्ञानी अन्धे हैं। वास्तव में तो नेत्रहीन व्यक्ति अंधे नही हैं; बल्कि हृदयरूपी आँखें जिनके नहीं हैं, वे अंधे हैं। देव धर्म गुरु ग्रन्थ थे, बड़े रतन संसार इनको परखि प्रमानिये यह नरभव फल सार ॥ जे इनकी जानै परख, ते जग लोचनवान । जिनको यह सुधि ना परी, ते नर अंध अजान || लोचनहीन पुरुष को अन्ध न कहिये भूल । उर लोचन जिनके मुंदे, ते अन्धे निर्मूल ॥ 1 भेदविज्ञान एवं आत्मानुभव - सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए भूधरदास ने देव-शास्त्र-गुरु के श्रद्धान तथा सात तत्त्वों के श्रद्धान के साथ-साथ भेदविज्ञान एवं आत्मानुभव को भी आवश्यक माना है । भेदविज्ञान के समर्थन में वे पूर्वाचार्यों के कथनों को उद्धृत करते हुए प्रेरणा देते हैं - " एगो मे सासदो अप्पा णाणदंसणलक्खणो । सेसा में बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणी ॥ 367 2 इस प्राकृत का अर्थ विचारकै विषय कषायतें विमुख होई शुद्ध चैतन्य स्वरूप की निरन्तर भावना करनी ।" " इस गाथा का अर्थ है - यह मैं ज्ञान-दर्शन लक्षण वाला शाश्वत आत्मा हूं। शेष सभी संयोगलक्षण वाले मेरे बाहरी भाव है। 3 वे इस भेद विज्ञान को ही मोक्षमार्ग बतलाते हैं तथा कई प्राकृत गाथायें 1. पार्श्वपुराण, भूधरदास, अधिकार 5 पृष्ठ 44 2. चर्चा समाधान, कलकत्ता, भूधरदास, अन्तिम प्रशस्ति पृष्ठ 122 3. चर्चा समाधान, कलकत्ता, भूधरदास, अन्तिम प्रशस्ति पृष्ठ 122
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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