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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 365 शास्त्र - आप्त के वचन आदि हैं हेतु जिसमें ऐसे पदार्थ के ज्ञान को आगम कहते हैं। 'अथवा अरहन्त परमात्मा की वाणी में समागत पूर्वापर विरोध रहित तत्वार्थों का शुद्ध प्रतिपादन ही आगम है । ऐसा आदि - अन्त विरोधरहित आगम ही शुद्ध मनपूर्वक सुनने योग्य है । आप्त (सच्चे देव) वीतरागी और पूर्णज्ञानी होते हैं। अत: उनके वचन भी वीतरागता और पूर्णज्ञान के पोषक और प्रेरक होते हैं। उनके वचनों से मोह और अज्ञान नष्ट हो जाता है । जिनवाणी द्वारा वस्तुस्वरूप का यथार्थज्ञान होकर भेदविज्ञान होता है। सम्पूर्ण जिनवाणी का एक मात्र तात्पर्य वीतरागता है। जिनवचन परम उपकारी है। जिनेन्द्र भगवान के वचनों की महिमा वचनों से नहीं हो सकती। आगम के बिना अपार संसाररूपी समुद्र को भुजाओं के बल से तैरकर न कोई पार कर पाया है, न कर पायेगा । गुरु - सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र के द्वारा जो महान बन चुके हैं उनको गुरु कहते हैं। आचार्य, उपाध्याय और साधु गुरु कहलाते हैं। वे पंचेन्द्रियों के विषयों की आशा से रहित. सर्वप्रकार के आरम्म और परिग्रह से रहित, ज्ञान ध्यान और तप में लीन रहने वाले होते हैं। वे बारह प्रकार के तप करते हैं। 1. आप्तवचनादिनिबन्धमर्थज्ञानभागमः - परीक्षामुख-माणिक्यनन्दि, अध्याय 3, सूत्र 95 2. तस्य मुहग्गदवयणं पुनावोष विरहियं सुद्ध। __ आगमिदि परिकाहयं तेण दु कहिया हवंति तच्चस्था | नियमसार कुन्दकुन्दचार्य गाथा 8 3. बंदो जिनवाणी मन शोध । आदि अन्त जो विगत विरोध ।। पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, पीठिका पृष्ठ 10 4. जेनशतक, भूधरदास, जिनवाणी स्तुति छन्द 14 (मोहमहाचल प्रेद चली, जग की जड़ता तप दूर करी है।) 5. जैनशतक, पूधरदास, जिनवाणी स्तुति छन्द 15 (ता किस भांति पदारथ पांति, कहां लहते, रहते अविचारी ।) 6. पंचास्तिकाय,गाथा 172 अमृतचन्द्राचार्य की टीका 7, जैनशतक, भूधरदास, छन्द 15 (या विधि संत कहै धन है, धन है जिन वैन बड़े उपकारी) 8. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 103 महिमा जिनवर वचन की नहीं वचन बल होय। मुजबल सो सागर अगम, तिरे न तीरहि कोय । 9. भगवती आराधना, आचार्य शिवीदि, पृष्ठ 511 10. रत्नकरण्डश्रावकाचार, आचार्य समन्तभद्र, श्लोक 10
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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