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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 353 दर्शनीय है। वैसे भी किसी धार्मिक रचना का साहित्य होने के साथ विरोध नहीं है इसीलिये आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जैसे मनीषी विद्वान समस्त धार्मिक एवं आध्यात्मिक साहित्य को काव्य की सीमा में स्वीकार करते हुए निर्देश देते हैं"धार्मिक प्रेरणा या आध्यात्मिक उपदेश होना काव्यत्व का बाधक नहीं समझा जाना चाहिए।" धरदास के धार्मिक विचारों का आधार सामान्यत: जैनधर्म ही है, अत: सर्वप्रथम "जैनधर्म का अर्थ समझना आवश्यक है। जैनधर्म - जैनधर्म दो शब्दों से मिलकर बना है- प्रथम "जैन” और द्वितीय "धर्म" । "जैन" शब्द "जिन" से बना है। "जिन" का अर्थ है “जीतने वाला ।" जिसने रागद्वेषति विकारों को दीपा, इन्द्रियों और मन को जी, कर्मरूपी शत्रुओं को जीता; वही "जिन" है । “जिन का बताया हुआ या कहा हुआ धर्म ही “जैनधर्म" है। “जिन" धर्म अर्थात् वस्तु के स्वभाव को बनाते नहीं, बताते हैं। उन्होंने अपने दिव्यज्ञान अर्थात् केवलज्ञान में जैसा वस्तु का स्वभाव देखा, वैसा ही अपनी दिव्यध्वनि द्वारा कहा । कोई स्वीकार करे या न करे - इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं। ___"जिन" कोई अवतार नहीं होते हैं, वे हम जैसे सामान्य प्राणियों में से ही बनते हैं। जैनधर्म के अनुसार प्रत्येक जीव में परमात्मा बनने की शक्ति निहित है अर्थात् प्रत्येक जीव "जिन” या परमात्मा बन सकता है। जो जीव अपने आत्मोन्मुखी पुरुषार्थ द्वारा मोह - राग - द्वेषादि भावकों तथा ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्मों पर विजय पा लेते हैं, वे जीव बहिरात्मपना छोड़कर “अन्तरात्मा" होकर परमात्मा अर्थात् “जिन" बन जाते हैं । जिन" हो जाने पर वह जीव सर्वज्ञ और वीतराग हो जाता है, उसे सबका ज्ञान होता है और उसके अन्दर से राग-द्वेषदि का मलोच्छेद हो जाता है। उस अवस्था में वह जो उपदेश देता है. वह सत्य, प्रामाणिक एवं श्रेष्ठ ही होता है; क्योंकि अप्रामाणिक एवं असत्य अज्ञानता एवं राग-द्वेषादि होने पर ही बोला जाता है। जब वह सब कुछ जानता है तथा राग - द्वेष से रहित हो गया है तो असत्य, अप्रामाणिक एवं बुरा क्यों कहेगा? अत: उसका उपदेश सच्चा, अच्छा एवं हितकारक ही होता है। इस 1. हिन्दी साहित्य का आदिकाल- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी पृष्ठ 11
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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