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________________ 352 महाकवि भूषरदास : ___कवि भूधरदास ने जहाँ एक ओर पुनर्जन्म के समर्थन में पार्श्वनाथ, 1 ऋषभदेव, चन्द्रप्रभु, शन्तिनाथ, नेमिनार्थ आदि तीर्थकरों, कमठ, राजा यशोधर व रानी चन्द्रमति,' रुद्रदत्त पुरोहित आदि के पूर्वजन्मों या पूर्वभवों का उल्लेख किया गया है, वहीं दूसरी ओर प्रत्येक जीव अपने कर्मों के अनुसार ही फल भोगता है अथवा जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है- यह कर्मसिद्धान्त भी प्रतिपादित किया है । कर्मसिद्धान्त के समर्थन में भूधरदास कहते हैं - जैसी करनी आचर, तैसों ही फल होय। इन्द्रायन की गति के, साम - स्लाग कोग!" इस प्रकार भूधरदास ने अपने साहित्य में जैनदर्शन के सभी प्रमुख विषय जगल (विश्व), जीव, अजीव (पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल) आस्रव - बन्धरूप संसार के कारणतत्त्व या मक्तिमार्ग के बाधक तत्त्व, संवर-निर्जरारूप संसार के घातक या मोक्षमार्ग के साधक तत्त्व, मोक्षरूप साध्यतत्त्व, वस्तु स्वरूपात्मक अनेकान्त तथा उसका प्रतिपादक स्याद्वाद, निश्चयनय एवं व्यवहारनय, सप्तभंगी, पंचास्तिकाय, प्रदेश एवं उसकी सामर्थ्य, हेय, ज्ञेय, उपादेयतत्त्व, पुनर्जन्म एवं कर्मसिद्धान्त आदि का वर्णन किया है। अतः भूधरदास के दार्शनिक विचारों के अन्तर्गत उपर्युक्त सभी का विस्तृत विवेचन किया गया यार्मिक विचार भूधरदास के साहित्य में जैनधर्म का स्वर प्रतिध्वनित होता है। यद्यपि उनका साहित्य धार्मिकता से ओत-प्रोत है, फिर भी उसमें साहित्यिक सौष्ठव 1. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास पृष्ठ 90 तथा जैनशतक छन्द 86 2. जैनशतक, भूधरदास छन्द 82 3. जैनशतक, भूधरदास छन्द 83 4. जैनशतक, भूधरदास छन्द 84 5. जैनशतक, पूधरदास छन्द 85 6. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9 पृष्ठ 90-91 7. जैनशतक, भूधरदास छन्द 87 8. निशि भोजन मुंजन कथा- भूधरदास, प्रकीर्ण साहित्य 9. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, पृष्ठ 8
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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