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________________ 350 महाकवि भूधरदास : . द्रव्य निर्जरा है । इस प्रकार जिनशासन में कहा गया है। सम्यग्दृष्टि इन सबका सच्चा श्रद्धार करता है। मोक्षतत्त्व कथन - जो पूर्ण अभेद रत्नत्रय स्वरूप (सम्यग्दर्शन-ज्ञान -चारित्र रूप) वीतराग भाव है, वह भाव मोक्ष है तथा द्रव्य कर्मों का जीव से पूर्णत: छूट जाना द्रव्य मोक्ष है। यह मोक्ष कमी नष्ट न होने वाला अर्थात् अविनाशी है। जीव, अजीव, आखव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष - ये सात तत्त्व हैं। इन सात तत्त्वों में पुण्य और पाप मिलकर नौ पदार्थ कहे जाते हैं। वैसे सात तत्त्वों में पुण्य - पाप, आस्रव तथा बन्ध तत्त्व में गर्मित हो जाते हैं।' सात तत्त्वों में संसार के कारणरूप आलव - बन्ध तत्व हेय हैं अथवा बहिरात्मपना हेयं है। मोक्ष के कारणरूप संवर - निर्जरा एकदेश उपादेय हैं अथवा अन्तरात्मा कथंचित् (आंशिक प्रकट करने के लिए) उपादेय है । मोक्ष अथवा परमात्मदशा प्रगट करने के लिए सर्वथा उपादेय है। ज्ञानानन्द स्वभावी शुद्ध त्रिकाली ध्रुव सामान्य निजात्मतत्त्व या जीवतत्त्व आश्रय लेने के लिए परम उपादेय है। शेष अन्य जीव तथा अजीव आदि ज्ञेय हैं । इस प्रकार हेय, उपादेय तथा ज्ञेयतत्त्व जानना चाहिए।' निश्चयनय और व्यवहारनय - अनेकान्तात्मक वस्तुस्वरूप को समझने के लिए जिस स्यावाद का वर्णन पूर्व में किया है, उसी सन्दर्भ में ( किसी अपेक्षा कथन करने के संबंध में) 1, तप बल कर्म तथा थिति पात। जिन भावों रस दे शिर जात ॥ तेई भाव भाव निर्जरा। संवर पूरव है शिवकरा ॥ बन्धे कर्म छूटें जिस बार । दरब निर्जरा सो निर्धार ॥ इहि विधि जिन शासन में कहिया। समकितवंत सांच सरदहिया ॥ पार्श्वपुराण,कलकत्ता, अधिकार 9. पृष्ठ 85 2. जो अभेद रत्नत्रय भाव,सोई भाव मोक्ष ठहराव। जीन कर्म सो न्यारा होय, दरब मोक्ष अविनाशी सोय॥ पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 85 3. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 85 4, पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 77
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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