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________________ 348 महाकवि भूधरदास: प्रदेश तथा उसकी शक्ति का कथन आकाश के जितने स्थान को एक अविभागी पुद्गल परमाणु रोकता है, उसे “प्रदेश” कहते हैं। वह एक प्रदेश कालाणु, धर्म, अधर्म, जीव, पुद्गल आदि सभी द्रव्यों को स्थान देता है।' . आकाश के एक प्रदेश में धर्म, अधर्म, काल, असंख्य प्रदेशी जीव और अनन्त पुद्गल कैसे आ जाते हैं ? जिस प्रकार कविर में अनेक दशकों का श आने में कई बाधा नहीं है; उसी प्रकार आकाश के एक प्रदेश में अनेक द्रव्य निराबाधरूप से निवास करते हैं। आस्त्रवतत्त्व कथन - कर्मों के आने को आस्रव कहते हैं। उसके दो भेद हैं - द्रव्य आस्त्रव और भाव आस्त्रव । मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग - ये जीव के विकारी परिणाम हैं, इन्हीं को भावात्रव कहते हैं। इन चेतन परिणामों के अनुसार आत्म प्रदेशों में कर्म के योग्य पुद्गल (कार्माण) वर्गणाओं का आना, द्रव्यास्रव है। बन्धतत्त्व कथन - जिन रागादि परिणामों से जीव बंधता है, उन रागादि विकारी भावों को भावबन्ध जिनदेव ने कहा है। उन भावों के कारण आत्मप्रदेशों 1. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 84 2. पावपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 84 3. बहुप्रदीप परकाश, यथा एक मंदिर विर्षे । लहै सहज अवकाश, बाधा कछु उपजै नहीं । त्यों ही नभ परदेश में, पुद्गल बंध अनेक । निराबाध निवसै सही, ज्यों अनन्त त्यों एक || पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 84 4. जो कर्मन को आवागमन, आस्रव कहिये सोय । ताके भेद सिद्धान्त में, पावित दरवित होय ॥ मिथ्या अविरत योग कषाय। और प्रमाद दशा दुखदाय ॥ ये सब चेतन को परिणाम। भावात्रव इन्हीं को नाम || तिनहीं भावन के अनुसार । दिगवरती पुद्गल तिहि बार ॥ आवै कर्म पाव के जोग। सो दरवित आस्रव अमनोग ॥ पार्चपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 84
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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