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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 47 इस प्रकार जीव तथा पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश काल - ये पाँच अजीव द्रव्य हैं। इन छह द्रव्यों के समुदाय को ही विश्व कहते हैं। यह विश्व स्वनिर्मित है, इसे बनाने वाला कोई नही है । भगवान इसके जानने देखने वाले हैं, बनाने वाले नहीं। पंचास्तिकाय • विवरण - इन छह द्रव्यों में काल द्रव्य को छोड़कर शेष पाँच द्रव्य “पंचास्तिकाय” कहलाते हैं । अस्ति का अर्थ “है तथा “काय" का अर्थ “बहुप्रदेशी” है। जो द्रव्य बहुप्रदेशी हैं, वे अस्तिकाय हैं।' कालद्रव्य बहुप्रदेशी नहीं है, अत: वह अस्तिकाय नही है । जीव, धर्म, और अधर्म लोकाकाश के बराबर असंख्यात प्रदेश वाले हैं। आकाश अनन्तप्रदेशी है। पुद्गल संख्यात, असंख्यात और अनन्त - तीनों प्रकार के प्रदेश वाला होता है। कालाणु एक प्रदेशवाला है, इसलिए उसे “अस्ति” होने पर भी "काय” (बहुप्रदेश) रहित मानना चाहिए । ' यद्यपि पुद्गल-परमाणु भी एक प्रदेशी है; परन्तु उसमें स्निग्धरुक्षित्व गुण होने से परस्पर मिलकर स्कन्धरूप होने की शक्ति है इसलिए वह "काय" (बहुप्रदेशी) कहा गया है। जब कि कालाणु असंख्य हैं; परन्तु वे पृथक् - पृथक् होकर ही रहते हैं, आपस में कभी मिलते नहीं है; इसलिए वे "अस्ति" होकर भी “कायवन्त” नहीं कहे जा सकते 1. द्वादशानुप्रेक्षा आचार्य कुन्दकुन्द गाथा 39 2. छहढाला,पांचपी ढाल, लोक भावना का छन्द 3. बहु परदेशी जो दरव, कायवन्त सो जान । ताते पंच अथिकाय हैं , काय काल बिन मान | पाईपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 83 4. जीव धर्म अधर्म दरव ये,तीनों कहें लोक परमान। असंख्यात परदेशी राजे, नभ अन्तर परदेशी जान ।। संख असंख अनन्तप्रदेशी, त्रिविध रूप युद्गल पहिचान। एक प्रदेश धरै कालाणु, तात काल काय बिन मान | पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 83-84 5. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 84
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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