SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 335 एक समालोचनात्मक अध्ययन के अभाव की तरह, तत्समुदायरूप अनेकान्त का भी अभाव हो जायेगा। अत: यदि एकान्त ही स्वीकार कर लिया जाय तो फिर अविनाभावी इतरधर्मों का लोप होने पर प्रकृत शेष का भी लोप होने से सर्वलोप का प्रसंग प्राप्त होगा। " “सम्यगेकान्त नय है और सम्यगनेकान्त प्रयाण। अनेकान्तवाद सर्वनयात्मक है। जिस प्रकार बिखरे हुए मोतियों को एक सूत्र में पिरो देने से मोतियों का सुन्दर हार बन जाता है, उसी प्रकार भिन्न-भिन्न नयों को स्याद्वादरूपी सूत में पिसे देने से सम्पूर्ण नय श्रुतप्रमाण कहे जाते हैं।' __ आचार्य अमृतचन्द्र समयसार को आत्मख्याति टीका के परिशिष्ट में स्याद्वाद और अनेकान्त के सम्बन्ध में लिखते हैं कि "स्याद्वाद समस्त वस्तुओं के स्वरूप को सिद्ध करने वाला अर्हन्त सर्वज्ञ का अस्खलित (निर्बाध) शासन है। वह स्याद्वाद कहता है कि अनेकान्त स्वभाव वाली होने से सब वस्तुएँ अनेकान्तात्मक हैं। ...जो वस्तु तत् है, वही अतत् है, जो एक है, वही अनेक है, जो सत् है, वही असत् है, जो नित्य है, वही अनित्य है- इस प्रकार एक वस्तु में वस्तुत्व की उत्पादक परस्पर विरुद्ध दो शक्तियों का प्रकाशित होना अनेकान्त जो वस्तु प्रमाण की दृष्टि से अनेकान्तरूप है वही नय की दृष्टि से एकान्त रुप है परन्तु यह एकान्त किसी एक दृष्टि से होने के कारण सम्यक् है। यदि अनेक धर्म या गुण वाली वस्तु को बिना अपेक्षा के सर्वथा ही वैसा मान लें तो वह मिथ्या एकान्त हो जायेगा; क्योंकि सम्पूर्ण वस्तु वैसी नही है, अपितु वस्तु का एक अंश वैसा है। वस्तु के एक अंश का देखकर सम्पूर्ण वस्तु को वैसा ही मानना असत्य है। जैसे जन्मान्ध पुरुषों द्वारा हाथी के किसी अंग को जानकर सर्वांग हाथी को वैसा ही समझना असत्य है। संसार में अनेक मतों या दर्शनों 1. राजवार्तिक, अकलंकदेव अध्याय 1 सूत्र 6 की टीका पृष्ठ 35 2. वही पृष्ठ 35 3, स्यावाद मंजरी,श्लोक अ) की टीका, हेमचन्द्राचार्य। 4. स्याद्वादो हि समस्तवस्तुतत्त्वसाधकमेकमस्खलितं शासनमर्हत्सर्वज्ञस्य । स तु सर्वमनेकांतात्मकमित्यनुशास्ति, तत्र तदेव तत्तदेवातत्, यदेवहं तदेवानेक, यदेव सत्तदेवासद्, यदेव नित्यं तदेवानित्यमित्येकवस्तुवस्तुत्वनिषादकपरस्परविरुद्धशक्तिद्यप्रकाशनमनेकान्तः।' समयसार, परिशिष्ट आचार्य अमृतचन्द्र कृत टीका पृष्ठ 648
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy