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महाकवि भूधरदास :
इस प्रकार भूधरसाहित्य में विभिन्न मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग हुआ है। भूधरदास ने इन कहावतों एवं मुहावरों का प्रयोग बिना किसी प्रयास के स्वाभाविक रूप से किया है। उनकी अभिव्यक्ति की सरलता में जो कहावत या मुहावरा सर्वथा उपयुक्त ठहरता है, उसका उन्होंने उपयोग किया हैं। इन मुहावरों का प्रयोग भावाभिव्यक्ति की सम्पन्नता एवं अलंकरण सौन्दर्य के लिए ही हुआ है। इससे अर्थ व्यंजना के साथ-साथ भाषा पर उनके असाधारण अधिकार का परिचय मिलता है। उनके मुहावरा में सुबोधता एवं अकृत्रिमता सर्वत्र विराजती है । वास्तव में मुहावरे एवं कहावतों के सम्यक् प्रयोग से भाषा में प्रभावशीलता पैदा हुई है तथा भावसौन्दर्य में अभिवृद्धि हुई है।
भूधरदास की गद्य शैली भूधरदास का एकमात्र गद्यग्रन्थ 'चर्चा समाधान' है। इसकी प्रतिपादन शैली उद्धरणयुक्त प्रश्नोत्तर शैली है। इसमें उन्होंने जैनधर्म, दर्शन से सम्बन्धित अनेक प्रश्न एवं उत्तर चर्चा और समाधान के रूप में प्रस्तुत किए हैं। विषय परम्परागत होने पर भी उसके प्रस्तुतीकरण में मौलिकता है । इसके लिए उन्होंने सरल दृष्टान्तमयी उद्धरणयुक्त प्रश्नोत्तर शैली को अपनाया है। उनके गद्य का उदाहरण देखिये -
__ "इह चरचा समाधान ग्रंथवि केतेक संदेह साधमीजनों के लिए आए, शास्त्रानुसार तिनका समाधान हुआ है तो लिखा है। अब जो बहुश्रुत सज्जन गुणग्राही हैं; तिनसूं मेरी विनती है इस ग्रन्थ को पढ़वे की अपेक्षा कीजो, आद्योपांत अवलोकन करियो। जो चरचा तुम्हारे विचार को सद्दहै सो प्रमाण करसौ, जो विचार में न सद्दहैं तहां मध्यस्थ रहना और जैन की चरचा अपार है काल दोष सों तथा मतिश्रुत की घटती सों तिविौं संदेह बहुत पड़े, तिसतें तिनका कैसे तांई कोई निर्णय करेगा।
विषय को स्पष्ट करने के लिए स्वयं ही अनेक शंकाएँ उठाकर समाधान करना - उनकी शैली की विशेषता है। अपने समाधान को प्रामाणिक एवं आगमसम्मत सिद्ध करने के लिए वे अनेक ग्रन्थों की साक्षी देते हैं, विविध आगमों के उद्धरण देते हैं, अधिकाधिक प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। उदाहरणार्थ -
"चरचा 60 मुनिराज शास्त्रादि उपकरण राखें कि नहीं ?