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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 327 112 हाय हाय पड़ना हाय हाय परी है जैनशतक छन्द 21 113. हाथ अंजुली करना हम हाथ अंजुली करे जैनशतक छन्द 13 मुहावरों की भांति लेखक ने अपने काव्य में कहावतों का भी प्रयोग किया हैं। भूधरसाहित्य में व्यवहत कहावतें निम्नलिखित हैं :। अब अपनों दाम खोटों तो सर्राफ को कहा दोष । खोटो दाम आपनौ सराफै कहा लागै वीर ॥ जैनशतक 7 2 ज्यों-ज्यों भीजै कामरी त्यों-त्यों भारी होय। भूधर पल-पल हो है भारी ज्यों ज्यों कमरी भोजै रे ॥ जैनशतक11 . इबने से दो अंगुष्ट बनी न पार हो जाती है! , दो अंगुल बूढ़त बचे नाव का पंहुचै पार ॥ प्रकीर्ण साहित्य 4 बीती ताहिं विसारि देहु आगे की सुधि लेहु।। ___ गई सो गई अब राखि रही को ॥ जैनशतक छन्द 29 5 धोया पेड़ बबूल का आम कहा से खाय।। आम चाखन चहे भोंदू बोय पेड़ बबूल ॥ भूयरविलास पद 28 6 विष का कीड़ा विष ही में राजी रहती है। विषको सों कीरा नित विष ही में रम्यौ वीरा ।। प्रकीर्ण पद 7 मशालची अपने को नहीं देखता है। ज्यों मशालची आप न देखे ॥भूधरविलास पद 36 ४ सापों के संग से चंदन पर भी कुल्हाड़ा चलता है। सांपन से संग सों कटे चंदन अधिक सुगंध ।। प्रकीर्ण दोहा 9 सांप टेडी चाल नहीं छोड़ता है। वक्र चाल विषधर नहीं तजै॥ पार्श्वपुराण पृष्ठ 4 10 सिर देने से सूर कहलाता है। सूर कहावै ओ सिर देय ।। पावपुराण पृष्ठ 61
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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