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एक समालोचनात्मक अध्ययन
77. बाट के बटोही
78. बांह सौंपना
79. बांकी भौ
80. विष बोना
81. बुद्धि हरना
82. भोंदू होना
83. मति हरना
84. मन माना
85. माथे करना
86 मार्ग लगना
87. मुंह छिपाना
88. मुट्ठी की धूल
89. मुख में कालिख पोतना
90. राग रंग होना
91. रात्रि का सुपना
92. रोया रोई पड़ना
लौं लगना
93.
94. विदा होना
95. सुपने का तमासा
बट के बटोही काक
आने वर माहि
निज सुत सोंपि
राय की बाहि
जिनकी तनक देखि
भौ बांकी
तू विष बोवन लागत
किन बुद्धि हरी है
फिरि क्यों भोंदू होय.
तेरी मत कोने हरी है
मन भाई रे
सो कुबेर निज माथे करी
इन मारग मति लागो रे
वृद्ध वदन दुराव है
सब मत झूठी धूल की
साधन झार दई मुख छार
काहु रंग रंग
यह संसार रैन
का सुपना
रोया रोई करी है ।
लगी लौं नाभिनन्दन सों
जोवन ने विदा लीनी
जारे तमासा सुपने
का सा
प्रकीर्ण साहित्य
325
पार्श्वपुराण पृष्ठ 5
पार्श्वपुराण पृष्ठ 31
भूधरविलास पद 4
जैनशतक छन्द 20
भूधरविलास पद 4
जैनशतक छन्द 21
जैनशतक छन्द 47
पार्श्वपुराण पृष्ठ 43 पार्श्वपुराण पृष्ठ 82
जैनशतक छन्द 41
जैनशतक 92
जैनशतक छन्द 65
जैनशतक छन्द 61
भूधरविलास
पद 19, 32 जैनशतक छन्द 21
भूधरविलास पद 1 जैनशतक 39
भूधरविलास पद 9