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महाकवि भूधरदास :
विषधर' एवं उनके पर्यायवाची शब्द , इन्द्रायन', आक* ,जवास', जोक , कालकूट', भैस आदि को दुर्जन का प्रतीक माना है। मोह या मिथ्यात्व का प्रतीक मानिरा. श्यामरंग , रात", कार के तथा राग का प्रतीक चोर ", नाग , उरग", को स्वीकार किया है। इसके अतिरिक्त -
माया - ठगिनी 19, नागिनी ", कुमति - कागली, दण्ट - कालाँस', पाप - धतूरा, काल - मजार 24, काक", वृद्धता - सेत, धोरे (श्वेत बाल), विपन्नता - पत्तझर 4 जेठमास, कामी - पतंग" कपटी - साँप " अस्थिरता - पतासा, बबूलाको प्रतीक माना गया है।
ये समस्त प्रतीक दुःख की प्रतीति कराने वाले होने से दुःखबोधक ही समझना चाहिए।
3. शरीरबोधक प्रतीक :- सुख-दुःख की तरह शरीर का बोध कराने वाले अनेक प्रतीकात्मक शब्दों क्न व्यवहार भी भूधरदास ने अपने साहित्य में किया है। कवि ने शरीर के लिए जिन विभिन्न प्रतीकों का प्रयोग किया है, वे प्रतीक हैं -
1. पार्श्वपुराण पृष्ठ
4 2. प्रकीर्ण पद 3. पार्श्वपुराण पृष्ठ 8 4. प्रकीर्ण पद गुटका संख्या 6766 राजस्थानी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान शाखा बीकानेर 5. से 8 तक वही गुटका 6766 9. पार्श्वपुराण पृष्ठ 86 10. जेनशतक छन्द 31 11, जैनशतक छन्द 68 12. भूधरविलास पद 13 एवं पार्श्वपुराण पृष्ठ ! 13. जैनशतक छन्द 68 14. पार्श्वपुराण पृष्ठ 1 15. प्रकीर्ण पद 16, भूधरविलास पद 8 17. प्रकीर्ण पद गुटका संख्या 6766 18. पूधरविलास पद 33 19, पार्श्वपुराण पृष्ठ 6 20. पंधरविलास पद 4 21. भूधरविलास पद 5 22. भूधरविलास पद 10 23. जैनशतक छन्द 29 24. जैनशतक छन्द 29 25. प्रकीर्ण पद गुटका संख्या 6766 26. भूधरविलास पद 32 27. प्रकीर्ण पद गुटका संख्या 6766 28. भूधरविलास पद 9 29. भूषरविलास पद 19