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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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भाव, स्वरूप तथा सामग्री के आधार पर समग्न भूधरसाहित्य में व्यवहत प्रतीकों को हम निम्नलिखित चार भागों में विभाजित कर सकते हैं -
1. सुख बोधक 2. दुःख बोधक 3. शरीर बोधक 4. आत्मबोधक - प्रतीक इनका विस्तृत विवेचन निम्नांकित है -
1. सुखबोधक प्रतीक :- यद्यपि सुख आत्मा का ही स्वभाव है तथापि लौकिक प्राणी इन्द्रियगत विषयों (वस्तुओं) एवं इन्द्रियजन्य सफल सन्तुष्टियों में सुख की अनुभूति कर लेता है। कवि भूधरदास ने अपने समग्र साहित्य में मधु, पुष्प, किसलय, मोती, ऊषा, अमृत, दीप, प्रभात, प्रकाश, हंस', दर्पण', चन्दन ', आम', कमल', ताम्बूली, शंख', साथियाँ " , सावन', पपीहा १०, नवनिधियों ", अंजनवटी ", सलाक ", आदि को सुख के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया है। साथ ही बाल तीर्थकर पार्श्वनाथ की माता को तीर्थकर के जन्म के पूर्व दिखने वाले सोलह स्वप्न के रूप में ऐरावत हाथी, वृषभ, सिंह, कमला, पुष्पमाला, शशि, सूर्य, मीन, कुम्भ, सरोवर, समुद्र, सिंहासन, देवविमान, नागराज, रत्नराशि, एवं अग्निशिखा को भी शुभसूचक मानते हुए सुख का प्रतीक स्वीकार किया है।
2. दुःखबोधक प्रतीक :- समस्त प्रतिकूलताएँ एवं इन्द्रियगत असंतुष्टियाँ दुःख का कारण हुआ करती है । वास्तव में तो दुःख का कारण जीव का अज्ञान या मोह-राग-द्वेष है; जिसके कारण ही संसार दुःखरूप हो जाता है। भूधरदास ने संसार को दुख का कारण मानकर जलधि एवं उनके पर्यायवाची शब्द, सरवर, स्वप्न ", झीलर', शतरंज 19, आदि को संसार का प्रतीक एवं सारस, बटोही 21, पंछी 22 को संसारीजन का प्रतीक बताया है।
1. पार्श्वपुराण पृष्ठ 4 4. वही पृष्ठ 8 7. वहीं पृष्ठ 48 10. भूधरविलास 18 13. जैनशतक छन्द 90 15. पाशपुराण पृष्ठ 1 तथा 62, 17. भूधरबिलास पद 32 19. जैनशतक छन्द 32 21, जैनशतक छन्द 68
2. वही पृष्ठ 7
3. वही पृष्ठ 7 5. वही पृष्ठ। 6. वही पृष्ठ 47 8. वही पृष्ठ 13 9. पूधरविलास 18 11. पार्दपुराण पृष्ठ 15 12.जैनशतक छन्द 36 14. पार्श्वपुराण पृष्ठ 45 - 46 16. पार्श्वपुराण पृष्ठ 21 18. भूधरविलास पद 33 20. पार्श्वयुराण पृष्ठ 21 22. पाशवपुराण पृष्ठ 21