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________________ 316 महाकवि भूधादास: प्रतीक योजना प्रत्येक भावुक कवि तीव्र रसानुभूति के लिए प्रतीक योजना का आश्रय लेता है। प्रतीक योजना भाषा को भावप्रवण बनाने के साथ-साथ भावों की यथार्थ अभिव्यंजना भी करती है । प्रतीक के बारे में श्री नेमिचन्द जैन ज्योतिषाचार्य लिखते हैं कि.- “वर्ण्य विषय के गुण या भाव साम्य रखने वाले बाह्य चिह्नों को प्रतीक कहते हैं । मानव हृदय के गुह्यतम अन्तर्भावों की अभिव्यक्ति के लिया प्राकृतिक पदीकों को माध्या बनाया जाता है। ये प्रतीक अमूर्त भावनाओं की प्रतीति कराने में सहायक सिद्ध होते हैं। मानव हृदय के अमूर्त भावों कम साक्षात्कार इन्द्रियों के द्वारा नहीं किया जा सकता है । वे अमूर्त भावनाएँ प्रतीक योजना के आश्रय से हृदय पर सर्वाधिक गम्भीर प्रभाव डालती है।" प्रतीक योजना अमूर्त को मूर्त रूप देकर अत्यन्त सूक्ष्म भावनाओं का साक्षात्कार कराने में समर्थ होती है । विविध संस्कृतियों के अनुसार काव्य में रसोद्रेक के लिए साहित्यकार भिन्न भिन्न प्रतीकों का प्रयोग करते हैं। सभ्यता, शिष्टाचार, आचार, व्यवहार तथा आत्मदर्शन के अनुरूप प्रत्येक साहित्यकार अपनी काव्य कला में प्रतीकों की उद्भावना करता है । हिन्दी जैन साहित्य में उपमान के रूप में प्रतीकों का प्रयोग अधिक हुआ है। विद्वानों ने प्रतीकों के दो भेद किये हैं - __ 1. भावोत्पादक 2. विचारोत्पादक । हिन्दी जैन साहित्य में इन दोनों भेदों के शुद्ध उदाहरण नहीं मिलते हैं। सुविधा के लिए जैन साहित्य में प्रयुक्त प्रतीकों को चार भेदों में विभक्त किया जा सकता है - 1. गुण व सुखबोधक प्रतीक 2. विकार एवं दुःख बोधक प्रतीक 3. शरीर- बोधक प्रतीक 4. आत्मबोधक प्रतीक हिन्दी के जैन कवियों द्वारा प्रयुक्त प्रतीकों का वर्गीकरण करते हुए डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री भी प्रकारान्तर से इसीप्रकार के वर्गीकरण को स्थिर करते हैं।' 1. हिन्दी जैन साहित्य परीशीलन भाग 2 - नेमिचन्द्र जैन पृष्ठ 193 2. हिन्दी जैन साहित्य परीशीलन भाग 2 - नेमिचन्द्र जैन शास्त्री पृष्ठ 193
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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