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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 315 प्राचीन शास्त्रोक्त कथाओं का उपयोग दृष्टान्त अलंकार के रूप में किया है।' इसीप्रकार सप्त व्यसन की चर्चा करते हुए कवि द्वारा पाण्डव राजा, बक जानोगण, चारुदतराजा बहादत शिवभूति बाहा तथा रावण का दृष्टान्त दिया गया है।' उदाहरण अलंकार - नीतिपरक चर्चाओं में कवि द्वारा उदाहरण अलंकार का प्रयोग हुआ है। यह प्रयोग परम्परागत होते हुए भी यत्र - तब नवीनता के साथ अभिव्यक्त हुआ है। काचली, भुंजग, आक, जवासा आदि परम्परागत उदाहरण हैं और बूढ़ा बैल, दूब, खल, भैंस आदि के उदाहरण हिन्दी साहित्य में सर्वथा नवीन हैं। इन उदाहरणों द्वारा कवि का मूलोद्देश्य धार्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति करना है, न कि रीतिकालीन कला का प्रदर्शन करना। . भक्तिकालीन निर्गुण और सगुण भक्त कवियों की तरह भूधरदास में भी अलंकारों के प्रति आग्रह की बात नहीं दिखती है उन्होंने अपनी नैतिक, धार्मिक जनोपयोगी आदि चर्चाओं में सहज रूप से अलंकारों का प्रयोग किया है । इन प्रयोगों में कवि ने प्रस्तुत से अप्रस्तुत एवं बाह्य से अंतस् को जोड़ा है। पूर्व प्रचलित हिन्दी जैन कवियों की परम्परा में भी कवि द्वारा अलंकारों का पर्याप्त प्रयोग किया गया है। 1. पदमरूप,सुलोचना, गंगादेवी, चारुदत्त, धरणेन्द्र, पद्मावती, सीता, चम्पापुर का ग्वाला, सेठ सुदर्शन, अंजन चोर, जीवक सेठ आदि नौकार महातम की ढाल प्रकीर्ण भूधरदास पद 50 2. जैनशतक छन्द 61 3. धर्म भार जब तन थकै तब धरि सके न कोय। थविर बैल, सो कहा बने जो बोखर भारी होय ।। जो खल कुवचन नहीं कहै तदपि बैर जिय संग । तजै कदाचित् कांचली, विष नहीं वमत भुजंग ।। जेठ मास में होत है दिरख बैल मुरझाच । अपत आंक फूले तहां देखो नीच सुझाव ॥ सुनि रुचि नहिं बैठे रूठ सुझाव की चाल । खांड ख्वाबों भैंस कू खल खाये खुसियाल ।। प्रकीर्ण दोहे गुटका नं. 6766 बीकानेर
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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