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महाकवि भूधरदास :
की ', मुकुट मणियों की प्रतिछाया में अमरों की दुःखियों को सम्बल देने के अर्थ में भगवान की आजानुबाहु की', तथा जिन भगवान के एक हबार आठ लक्षणों में कल्पतरु के पुष्पों की', अनूठी कल्पनाएँ व्यवहृत्त हुई हैं । यहाँ पर जिन उत्प्रेक्षाओं का प्रयोग हुआ है, वे वस्तुतः रूढ़िमत हैं तथा उनसे कवि कथन में अनुप्रास चमत्कार भी परिलक्षित होता है यथा -देवगण भगवान के चरणों में अपना मस्तक झुका रहे हैं, मानों वे अपने कुकर्मों की रेखा मिटाना चाहते हैं।' जन्माभिषेक के समय जल ऐसा लग रहा है, मानों निष्पाप होकर उर्ध्वगमन कर रहा हो। कुंकुमादि द्वारा बाल तीर्थंकर का लेपन ऐसा लग रहा है मानों नीलगिरि पर साँझ फूली हो।' इसके अतिरिक्त कवि ने अन्य अनेक उत्प्रेक्षाएँ प्रकृति से ली हैं।
विनोक्ति - जहाँ एक के बिना दूसरे के शोभित या अशोभित होने का वर्णन किया जाता है, वहाँ विनोक्ति अलंकार होता है। कवि द्वारा विनोक्ति अलंकार का प्रयोग दार्शनिक मान्यताओं की स्थापना के प्रसंग में सफलतापूर्वक हुआ है। इसके अन्तर्गत भूधरदास ने राग के बिना भोगों की हीनता का वर्णन किया है।
विभावना - ईश्वरीय शक्ति का तालु ओष्ठ के बिना प्रभु द्वारा वाणी का खिरना वस्तुत: विभावना अलंकार का पुष्ट प्रयोग है।
दृष्टान्त - जैन जगत में “नमोकार मंत्र" अथवा "नमस्कार मंत्र” का बड़ा ही महत्व रहा है। नमोकार मंत्र की महिमा स्थापित करने के लिए कवि ने अनेक 1. जैनशतक पद 1 2. जैनशतक पद 6 3. जैनशतक छन्द 1 4. पावपुराण आम अधिकार पृष्ठ 68 5. जैनशतक छन्द 1 6. पार्श्वपुराण षष्ठ अधिकार पृष्ठ 52 7. यही पृष्ठ 52 8. पार्श्वपुराण अष्टम अधिकार पृष्ठ 71,106 9. अनशवक छन्द 18 10. पावपुराण, अधिकार 7