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महाकवि पूधरदास : के काव्य में हंसाल छन्द का प्रचलन रहा है। कबीर, रैदास, नानक दादूदयाल, हरिदास निरंजनी आदि द्वारा हंसाल एवं करखा छन्द का प्रयोग हुआ है। श्रृंगारादि कोमल भावों की अभिव्यक्ति के लिए करखा और झूलना का तथा वीर और भयानक भावों की अभिव्यक्ति के लिए हंसाल का प्रयोग होता रहा है। कभी-कभी हंसाल का प्रयोग श्रृंगारपरक पदों में भी उपलब्ध होता है। भूधरदास द्वारा केवल एक "हंसाल” छन्द का प्रयोग “झूलना” के नाम से हुआ है। जिसका छन्द निर्णय यहाँ यति स्थान 2017 को दृष्टि में रखकर किया गया है । इसमें कवि द्वारा भक्तिपूर्ण कोमल भावों की अभिव्यक्ति हुई है।
हरिगीतिका - हरिगीतिका मात्रिक समछन्द का एकभेद है। इसमें 16-12 के विश्राम से 28 मात्राएँ होती हैं। हिन्दी साहित्य के कवियों ने हरिगीतिका छन्द के प्रयोग में स्वतंत्रता बरती है और अपनी इच्छानुसार प्रयोग किया है।' इस छन्द का व्यवहार सभी रसों में समान रूप से हो सकता है। भूधरसाहित्य में हरिगीतिका छन्द का प्रयोग प्रबन्ध और मुक्तक दोनों ही प्रकार के काव्य में उपलब्ध है। इस छन्द का “हरिगीत” तथा “गीता" नाम से 16 बार पार्श्वपुराण में और “गीतिका" नाम से केवल एक बार जैनशतक में प्रयोग हुआ है। कवि द्वारा इस छन्द का प्रयोग सामान्य वर्णन के लिए शान्त रस की अभिव्यक्ति में हुआ है।
रोला - रोला मात्रिक समछन्द है। इसमें 11-13 के विश्राम से 24 मात्रायें होता है । हिन्दी साहित्य में इसका प्रयोग सूर, चन्दवरदाई, नन्ददास, केशव सूदन,
आदि अनेक कवियों ने किया है । यह छन्द प्रत्येक रस की अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त हो सकता है; क्योंकि इस छन्द में वर्णन क्षमता की तीव्रता है।
--- . . 1, पया पूत प्रिय कारिणी मायजी के किंधो लोक के चन्दने जनम लीया ॥
इन्द्र चन्द्र नागेन्द्र के नेन आळे जीये जीव पंछी तिने प्रेम दीया गया पाप संताप सब आप ही सकल शिष्टि धापी सुधा पान पीया भूधरमल्ल से दास की आस पूगी मेरे चित्त आकास में वास कीया ॥
गुटका प्रकीर्ण 6766 बीकानेर 2. छन्द प्रभाकर - जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' पृष्ठ 67 3. हिन्दी साहित्य कोश भाग 1 सम्पादक डॉ. धीरेन्द्र वर्मा पृष्ठ 62 4. छन्द प्रभाकर - जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' पृष्ठ 61