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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन आर्या आर्या छन्द भाषा का शुद्ध मात्रिक छन्द है । आर्या छन्द का संस्कृत भाषा में प्रचुर प्रयोग रहा है। साहिल में इस छन्द का अत्यल्प व्यवहार परिलक्षित होता है । कवि द्वारा पार्श्वपुराण में दो बाद उद्धरण हेतु आर्या छन्द का प्रयोग किया है। चर्चा समाधान में भी कई बार आर्या छन्दों के उद्धरण दिये गये हैं। - धत्ता धत्ता मात्रिक अद्धसम छन्द है।' यह अपभ्रंश का बहुत व्यवहृत छन्द रहा है। हिन्दी साहित्य में भी विरलता के साथ धत्ता छन्द का प्रयोग उपलब्ध होता है । भूधरदास ने “पंचमेरै की आरती" नामक फुटकर रचना में धत्ता छन्द का दो बार प्रयोग किया है। त्रिभंगी त्रिभंगी मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। - 303 - इसका व्यवहार अपभ्रंश काल से ही रहा है। हिन्दी में तुलसी, केशव, घनानन्द आदि ने त्रिभंगी छन्द का प्रयोग किया है। प्रार्थनापरक एवं स्तुतिपरक भावों की अभिव्यक्ति के लिए त्रिभंगी छन्द का प्रयोग मुख्यतः हुआ है। वीर काव्यों में वीर रस के साथ उसके सहकारी रस- रौद्र तथा वीभत्य में भी यह छन्द प्रयुक्त हुआ है। भूधरदास के दो अष्टक त्रिभंगी छन्द में लिखे हैं; जिनमें प्रार्थना एवं स्तुतिपरक भावों की अभिव्यक्ति हुई है ।' हंसाल - हंसाल सममात्रिक दण्डक का एक भेद है। - हंसाल, करखा और झूलना समान मात्रा वाले छन्द हैं। छन्द का निर्णय यति स्थान से कसौटी पर कसने से किया जाता है।" मध्यकालीन निर्गुनिये सन्तों 1. हिन्दी साहित्य कोश भाग 1 सम्पादक डॉ. धीरेन्द्र वर्मा पृष्ठ 310 2. पंचमेरु की आरती, गुटका नं. 6766 बीकानेर 3. छन्द प्रभाकर जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' पृष्ठ 72 दशम संस्करण 4. अष्टक नेमिनाथ के प्रकीर्ण गुटका 6766 बीकानेर। नेमिनाथ अष्टक प्रकीर्ण हस्तलिखित गुटका नम्बर 108 के पत्र 116 पर अंकित, आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर। - 5. छन्द प्रभाकर जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' पृष्ठ 76 दशम संस्करण 6. सूर साहित्य का छन्द शास्त्रीय अध्ययन डॉ. गौरीशंकर मिश्र "द्विजेन्द्र प्रथम संस्करण : पृष्ठ 271-72 सन् 1966
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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