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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 305 भूधरदास ने अपने प्रकीर्ण साहित्य में 26 बार रोला छन्द का प्रयोग किया है। इस छन्द में कवि ने एकीभाव से भगवान जिनेन्द्र की स्तुति की है।' चामर • चामर वर्णिक समवृत्त कम एक भेद है। हिन्दी साहित्य में इसका व्यवहार होता रहा है। भूधरदास ने पार्श्वपुराण में केवल एक बार इस छन्द का प्रयोग किया है। मयत्तगन्द सवैया - यह वर्णिक वृत्त के भगणाश्रित वर्ग का एक भेद है। इसमें 23 वर्ण होते हैं। यह छन्द हिन्दी साहित्य के रीतिकाल में अपनी लयचारुता एवं ध्वन्यात्मकता के लिये विख्यात रहा है। भूधरदास ने वर्णवृत्त मत्तगयन्द सवैया का प्रयोग प्रबन्ध और मुक्तक दोनों प्रकार के काव्यरूपों में किया है। पार्श्वपुराण में 3 बार, एवं जैनशतक में 24 बार इसका प्रयोग हुआ है । कवि ने इसका प्रयोग स्तुति एवं आचारपरकादि भावों की अभिव्यक्ति के लिए किया है। दुर्मिल सवैया - दुर्मिल सवैया सवैया छन्द का एक सगणाश्रित भेद है। इसका प्रयोग भूधरदास ने मत्तगयन्द की अपेक्षा कम किया है । भूघरदास साहित्य में दुर्मिल सवैया का प्रयोग आचारपरक छन्दों में भक्तिपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए अतिसुघड़ता के साथ हुआ है । कवि ने जैनशतक में 6 बार तथा प्रकीर्ण साहित्य में 2 बार इसका प्रयोग किया है। मनहर कवित्त - मनहर कवित्त 21 वर्णमाला वर्णिक छन्द है। इसे सामान्यत: दण्डक या वृत्त भी कहते हैं । यह ब्रजभाषा का प्रिय छन्द है । तुलसी, सूर, केशव आदि ने भी इस छन्द का प्रयोग किया है। रीतिकाल में साहित्य का सारा वैभव मनहर कवित्त पर ही आधारित है । इस छन्द द्वारा सभी रसों की सफल अभिव्यक्ति की जा सकती है। मनहर कवित्त मुक्तक की विशेषता 1. एकीभाव स्तोत्र भाषा। 2. पाशवपुराण पृष्ठ 23 3. हिन्दी साहित्य कोश पाग 1 पृष्ठ - 897 द्वितीय संस्करण 4. हिन्दी साहित्य कोश भाग 1 सम्पादक डॉ.धीरेन्द्र वर्मा पृष्ठ - 897 द्वितीय संस्करण 5. वहीं पृष्ठ 63
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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