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________________ 298 महाकवि भूधरदास : वीरा थारी वान बुरी परी रे । देखौ गरब गहेली री हेली, जादों पति की नारी, क्रियापद :- भूधरसाहित्य में प्रयुक्त क्रियापद निम्नलिखित है - वर्तमानकालिक क्रिया - करे है, तरे है, ठांडे है, वन्दों, कहों, प्रणमामि, नमत । ___ भूतकालिक क्रिया :- दीनी, कीनी, लीनी, खोयो, रोयो, दियो, गयो भई, हुआ, आई, आया, पाई, पाया, भये, देख्या, पेख्या, हस्यौ, भज्यौ, मिल्यो । । भविष्यत् कालिक :- मिलेगा, पावेगा, अवैया, पछतेहे, हेंगे, लेंगे, होयेगी, आदि है (भरेगा) परि है। आज्ञार्थक क्रियायें :- तज, मज, हाल, जोर, छोर, कीजें, लीजें, विचारों, ' सिधारों, विसारों, दीजिए, सुनु, सुनहु । संस्कृत के कृत्वा प्रत्यय से बने हुए क्रिया के रूपों को कवि द्वारा इ, य लगाकर बनाया गया है। जैसे • आइ, आय, धरि, मानि, जानि । अपभ्रंश समर्थित क्रियायें :- उत्थपइ, विरजहि, लज्जहि, करिज्जै, लिज्जै, मुच्चै, खण्डे, विहण्डे, समप्पै, थप्पै, रूच्चै, विनट्ठी, दिछी आदि । इस प्रकार की क्रियाओं का प्रयोग प्राय: छप्पय नामक छन्द के अन्तर्गत ही हुआ है। भूधर साहित्य में व्यवहत क्रियाओं का रूप ब्रजभाषा खड़ीबोली तथा कन्नौजी से मिलता हुआ पाया जाता है तथापि विश्लेषण की दृष्टि से देखने पर प्राय: ब्रजभाषा का प्रभाव पदों में तथा खड़ी बोली की क्रियाओं का प्रभाव नीति सम्बन्धी कवित्त, सवैया, दोहा नामक छन्दों में पाया जाता है। बीच-बीच में अपभ्रंश समर्थित क्रियाओं का रूप भी व्यवहत हुआ है। संस्कृत के विभक्ति युक्त रूप भी कतिपय क्रियाओं में परिलक्षित होते हैं। इस सभी क्रिया रूपों 1. भूधरविलास पद 32 2, भूधरविलास पद 26 3. जैन शतक छन्द 8, 48, 61, 67 4.'प्रणमामि तीन चौबीसी की जयमाला प्रकीर्ण पद भूधरदास
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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