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________________ 299 एक समालोचनात्मक अध्ययन के अतिरिक्त कहीं-कहीं जैहे, जात आदि क्रियाओं में कन्नौजी का प्रभाव दृष्टव्य है।' उदाहरण के लिए नायक के जीते जैहे, भाजि । भूधर साहित्य में संयुक्त क्रियाओं का भी प्रयोग हुआ है। इसप्रकार कवि का भाषा व्यवहार प्राचीनता और नवीनता का समन्वय करने वाला तथा विविध रूप वाला रहा है। दूसरे शब्दों में भूधरदास ने हिन्दी भाषा के समग्र रूपों के साथ-साथ संस्कृत, अपप्रंश, अरबी-फारसी, उर्दू आदि के शब्दों एवं तत्सम्बन्धी क्रियाओं का व्याकरण संगत प्रयोग सफलतापूर्वक किया है। मुहावरे एवं लोकोक्तियों के सफल प्रयोग से भाषा और अधिक प्रभावी हो गई है। कुल मिलाकर महाकवि भूधरदास की भाषा विषय को अनुकूल होकर भावप्रवणता व मनोरंजकता से युक्त है। उसमें सरसता, कोमलता, मधुरता, सुबोधना, सार्थकता आदि गुप्प पारे हैं। सही विरधानुकूल प्रसाद, ओज व माधुर्यगुण का समावेश है । नाद-सौन्दर्य के साधन छन्द, तुक गति, यति, लय आदि का सुन्दर तथा मुहावरे और लोकोक्तियों का सफल प्रयोग पाठक को मंत्र-मुग्ध कर देता है । इसप्रकार भूधरदास की भाषा सर्वत्र भाव एवं विषय के अनुकूल होकर प्रभावकारी बन पड़ी है। (ख) छन्द विधान भाव के अनुसार छन्द का व्यवहार कुशल कवि के द्वारा हुआ करता है । छन्द के बारे में श्री जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' का कथन है कि मत, वरण, यति, गति नियम, अंतहि समता बन्द। जो पद रचना में मिलें, भानु भगत सुइ छन्द। 'भानु' भनत प्रति छन्द में चरण होत हैं चार । घट बढ़ विसमनि छन्द में, कविजन लेत विचार ।' मात्रा, वर्ण की रचना, विराम, गति का नियम और चरणान्त में समता जिस वाक्य रचना में पाई जाती है; उसे छन्द कहते हैं । प्रत्येक छन्द में चार पद, पाद या चरण होते हैं, परन्तु विषम छन्दों में कोई नियम नहीं है। 1 भूघरविलास पद 41 2. चल्या जात है खसकरि, भूधरविलास पद 41 3. छन्द प्रभाकर मंगलाचरण, जगनाथ प्रसाद 'भानु' पृष्ठ 4
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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