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एक समालोचनात्मक अध्ययन
297 6. सम्बन्ध कारक :- इस कारक के चिह्न का, की, के, के, को, हैं, जिनका कवि द्वारा सर्वत्र ही प्रयोग किया गया है। किसी-किसी स्थान पर अपवाद भी मिलते हैं यथा
सूरज मंडल की उनहार, सोहें सफल साल के खेत , तिस भूपत्ति के विप्र सुजान',
7. अधिकरण कारक : अधिकरण कारक के चिन्ह मोहि में, मैं, पै, पर-भूधर साहित्य सर्वत्र ही प्राप्त होते हैं । कभी-कभी सप्तमी विभक्ति का प्रयोग शब्द पर एऐ की मात्रा लगी हुई मिलती है । तथा विषै शब्द भी पाया जाता है। यथा - ___ शिला सहोदर शीश पै, जिन पद पीजरे बसि, कटि पै हाथ ", कानन में 7, किंकर पर कीजै दया, भांगा मिलि गया वेदे मगै-जी', आनन्द परि नगर में दई 1, मत खेद हिये कछुआने ", दुर्जन और श्लेष्मा ये समान जगमाहिं , धर्म धर्म के फल विष ।
प. सम्बोधन कारक :- सम्बोधन कारक के लिए भूधर-साहित्य में ऐ. रे, रे, अरे, वीर, वीरा, हे, री, भो, भाई इत्यादि शब्दों का प्रयोग हुआ है। इस प्रकार के सम्बोधन में नीतिपरक एवं भक्तिपूर्ण चर्चा हुई है। किसी-किसी स्थान पर संज्ञा शब्द के अन्तिम वर्ण पर "ओ" की मात्रा बढ़ाकर सम्बोधन कारक का विधान किया गया है। यथा - ऐसे मेरे वीर । काहे होत है अधीर यामें, अरे अंध सब धंध जानि स्वारथ के संगी, 15 देख्यौं री कहिं नेमि कुमार 1, मो बान्धव तो उर गम्भीर ", आयो रे बुढ़ापा मानी 19, अन्तर उज्जवल करना रे भाई 191 1. पार्श्वपुराण पृष्ठ 40
2. पार्श्वपुराण पृष्ठ 41 3. पार्श्वपुराण पृष्ठ 4
4. पार्श्वपुराण पृष्ठ 7 5, भूधरविलास पद 16 6. पार्श्वपुराण पृष्ठ 39 7. जैनशतक छन्द 55
8. भूधरविलास पद 48 9. पूधरविलास पद 12 10. पार्श्वपुराण पृष्ठ 3 11. पार्श्वपुराण पृष्ठ 6 12. पार्श्वपुराण' पृष्ठ 7 13. पार्श्वपुराण पृष्ठ 34 14. जैन शतक छन्द 71 15. जैन शतक छन्द 11 16. भूघरविलास पद 4 17. पार्श्वपुराण पृष्ठ 7
18. भूधरविलास पद 30 19. भूधरविलास पद 31