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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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अन्य पुरुष एक वचन - सो, वा, वह, ता, तिस, जा, जे, जिस, इस, या, यहि, यह यह, जो, जिहि, कोड, कोऊ, ताको, ताकों, ताहि, जाको, जाको, जाका, याकों, ताकू, ताका, ताके ताकी, ताक, जाका, जाकै, जाकी, जाकें, याका, याके, याकी, याके याकै, वाकै।
अन्य पुरुष बहुवचन - ते, तेई, तिन, तिनि, जै, वे, इन, उन, ए. केई, सर्व, सब, तिन्हें, त्यों, तिनको, बा, बिन, उनहीं, ये, इन, इह, येही, यातें, इहु, यह, एते, जिनको, जिनकों, तिनको, तिनको, तिनिको, इनको, सबनि., सबकूँ तिनका, तिनिका, तिनिकै, जिनका, जिनकै, जिनकै, इनका, इनकै, उनका, उनकी, उनकै, सबका, सबनिका।
कारक एवं विभक्तियाँ - हिन्दी की व्याकरण की दृष्टि से मीमांसा करने वाले ग्रन्थों में कारक और विभक्ति के सम्बन्ध में बहुत प्रम है । कारक
और विभक्ति दो अलग-अलग चीजें हैं। कारकों का सम्बन्ध क्रिया से है। वाक्य में प्रयुक्त विभिन्न पदों का क्रिया से जो सम्बन्ध है, उसे कारक कहते हैं । इन प्रयुक्त पदों का आपसी सम्बन्ध भी क्रिया के माध्यम से होता है, उनका क्रिया से निरपेक्ष स्वतन्त्र सम्बन्ध नहीं होता । इस प्रकार वाक्य रचना की प्रक्रिया में कारक एक पद का दूसरे पद से सम्बन्धतत्त्व का बोधक है अर्थात् वह यह बताता है कि वाक्य में एक पद का दसरे पद से क्या सम्बन्ध है। भाषा में इस सम्बन्ध को बताने वाली व्यवस्था विभक्ति कहलाती है। अर्थात् जिन प्रत्ययों या शब्दों से इस सम्बन्ध को पहिचान होती है, उसे विभक्ति कहते हैं। इस प्रकार विभक्ति भाषा सम्बन्धी व्यवस्था है। पाणिनी ने सात विभक्तियाँ और छह कारक माने हैं, इसमें एक-एक कारक के लिए एक एक विभक्तियाँ सुनिश्चित कर दी गई हैं।
कर्ता - प्रथमा, कर्म-द्वितीया, करण-तृतीया सम्प्रदान - चतुर्थी, उपादान-पंचमी, अधिकरण-सप्तमी षष्ठी के सम्बन्ध में उनका स्पष्ट निर्देश है “शेषे षष्ठी"।
सम्बन्ध को बताने के अतिरिक्त दूसरे कारकों को बताने के लिए भी षष्ठी का प्रयोग किया जा सकता है। शेषे षष्ठी का अभिप्राय यही है, परन्तु हिन्दी के व्याकरण में सम्बन्ध को कारक मान लिया गया और उसके लिए षष्ठी विभक्ति सुनिश्चित कर दी गई। इसी प्रकार सम्बोधन को भी एक विभक्ति दी जाती है, जो कि वास्तव में गलत है, जहाँ तक कारकों के ऐतिहासिक विकास