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महाकवि भूषरदास :
किलकिलत वेताल, काल कज्जल छवि सज्जहिं । भौं कराल विकराल माल मदगज जिमि गज्जहिं । मुंडमाल गल घरहिं लाल लोयन निडरहिं जन । मुख फुलिंग फंकरहिं करहिं निर्दय धुनि हन हन ।
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संज्ञा - भूधरदास द्वारा रचित विभिन्न रचनाओं में प्रयुक्त तत्सम तद्भव, देशज और विदेशी शब्दों का विवरण देते हुए अनेक संज्ञा शब्दों का उल्लेख किया जा चुका है ।
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सर्वनाम - भूधरसाहित्य में प्रयुक्त सर्वनामों का स्वरूप प्रायः ब्रजभाषा का है, किन्तु कतिपय सर्वनाम शब्दों का स्वरूप आधुनिक खड़ी बोली का भी व्यवहृत हुआ है। उदाहरणार्थ - कर्म व सम्प्रदान में ब्रज के "मोहि, मुहि, तोहि, तुहि" आदि रूपों के साथ खड़ी बोली के “मुझको, मोंकूं तोंकू” आदि रूप प्राप्त होते हैं । कहीं कहीं विशेषकर पद्य में " ताहि" भी दिखाई पड़ जाता है। "जिन्हें, तिन्हें किन्हें" के स्थान पर जिनको, तिनको, किनको प्रयोग में लाये गये है, जो बजभाषा की अपेक्षा खड़ी बोली के अधिक निकट है।
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डॉ. उदयनारायण तिवारी द्वारा बजभाषा में प्रयोग आने वाले सर्वनामों के विवरण के साथ भूधरदास द्वारा प्रयुक्त सर्वनामों के तुलनात्मक अध्ययन से ज्ञात होता है कि दोनों में पर्याप्त समानता है । दोनों में ही बहुवचन के रूपों का प्रयोग प्राय: एकवचन में भी हुआ है। इसी प्रकार " व" के स्थान पर “ब” तथा "य" के स्थान पर "ज" की प्रवृत्ति भी दोनों में समान रूप से पाई जाती है। भूधरदास द्वारा प्रयुक्त सर्वनाम निम्नांकित हैं ---
हमारो |
उत्तमपुरुष एकवचन - में, हों, मोहि, मो, मेरे, मुझकों, मोंको, मेरो, मोकूं, मेरा, मेरी, मेरो, मेरा, मेरयो, हमारे, हमारे, हमारा ।
उत्तमपुरुष बहुवचन - हम, निज, अपने, हमको, हमकों, हमारा, हमारे,
मध्यमपुरुष एक वचन - तू तू, तैं, तूने, तुम, ता, तो, तोहि, तेरो, तेरा,
तेरे । मध्यमपुरुष बहुवचन - तुम, तुमको, तुमकों, तुमकूँ, तुम्हारा, तुमारे, तुमको, तुमको।
1. पार्श्वपुराण कलकत्ता, अधिकार 8, पृष्ठ 68 2. प्रस्तुत शोध प्रबन्ध षष्ठ अध्याय
3. हिन्दी भाषा का उद्गम और विकास — डॉ. उदयनारायण तिवारी पृष्ठ 245
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