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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 293 कथानक सिद्धान्तकथन आदि के बीच-बीच में प्रयुक्त मुहावरे एवं लोकोक्तियों के माध्यम से भी लक्षणांशक्ति का व्यवहार किया है। चूंकि लोकोक्तियाँ और मुहावरे वाच्यार्थ से भिन्न लक्षार्थ हो ही प्रकट करते हैं, इसलिए उनका निकर लक्षणाशक्ति के अन्तर्गत ही आता है । यद्यपि समग्र भूधरसाहित्य में प्रयुक्त मुहावरे और लोकोक्तियों का विस्तृत विवेचन पृथक रूप से किया गया है; तथापि बानगी के रूप में उदाहरण दृष्टव्य है - दुर्जन जन की प्रीतसों, कहो कैसे सुख होय। विषथर पोषि पयूष की, प्रापति सुनी न लोय ॥' 3. व्यंजनाशक्ति - भूधरदास ने व्यंग्यार्थ को प्रकट करने के लिए व्यंजनाशक्ति का भी प्रयोग किया है। उदाहरणार्थ - पार्श्वनाथ के नाना द्वारा पार्श्वनाथ के प्रति किया गया व्यंग्यार्थ व्यंजनाशक्ति द्वारा ही अभिव्यक्त हो रहा है - "हरि हर ब्रहमा तुम ही भये। सकल चराचर ज्ञाता ठये॥ शब्द योजना - शब्दों का उचित और सटीक प्रयोग भाषा को सुन्दर, सशक्त और प्रभविष्ण बनाता है। भूधरसाहित्य में शब्दों की योजना भाव एवं प्रसंग के अनुसार ही की गई है। उदाहरणार्थ - कमठ द्वारा पार्श्वनाथ पर उपसर्ग करने का चित्रण देखिये - अंधकार छायो चहुंओर । गरज गरज बरसै घनघोर ।। झरै नीर मुसलोपम धार । बक्रबोज झलकै भयकार ॥ बूड़े गिरि तरूवर वनजाल । झंझा वायु बही विकराल ॥ जल थल भयो महोदधि एम। प्रभु निवसैं कनकाचल जेम ।। दुष्ट विक्रियावल अविवेक । और उपद्रव करै अनेक ॥' इसी प्रसंग में वर्गों या शब्दों की ध्वन्यात्मकता प्रशंसनीय है, जो चित्रभाषा के रूप में अपने भावों को अपनी ही ध्वनि में आँखों के सामने चित्रित करती 1. प्रस्तुत शोध प्रबन्ध, षष्ठ अध्याय- मुहावरे एवं कहावतें 2. पाश्वपुराण कलकत्ता, अधिकार 1, पृष्ठ 8 3. पार्श्वपुराण कलकत्ता, अधिकार 7, पृष्ठ 61 4. पार्श्वपुराण कलकत्ता, अधिकार 8, पृष्ठ 67
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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