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महाकवि भूधरदास:
हुताशन छन्द 11, तदाकृत छन्द 12, शिखा छन्द 15, सारंग छन्द 17, रामा छन्द 26, स्वाध्याय छन्द 48, सोम छन्द 44, आमिष छन्द 52, तृन छन्द 55, अदत्त छन्द 56, रत्नत्रयनिधि छन्द 68, तुंग छन्द 76, सिन्धु छन्द 78.द्वादश छन्द 94 |
तद्भव शब्द - जैनशतक में कवि द्वारा प्रयुक्त तद्भव शब्द हैं - काउसग्ग छन्द 2, रिषभ छन्द 2, रिद्धि छन्द 2, समरथ छन्द 2, नैन छन्द 3, जादौ छन्द 7. दिढ छन्द 9, जेठ छन्द 13, कागवानी छन्द 15, उछाह छन्द 21, सेत छन्द 29, करोर छन्द 33, तीजा छन्द 41, तिसना छन्द 44, चित छन्द 44, जुआ छन्द 50, लच्छन छन्द 50, विचच्छन छन्द 74, चाम छन्द 71, मसान छन्द 77, पुग्गल छन्द 8 । इसी प्रकार के और भी अनेक शब्दों का प्रयोग हुआ है, जिनका मूल उर मल में हैं; किन्तु गिनिसार अपने माया स्वरूप से पर्याप्त भिन्न हो गये हैं।
प्रकृताभास शब्द - जैनशतक में कतिपय प्रकृताभास शब्दों का प्रयोग हुआ है। यह प्रयोग प्राय: छप्पय छन्दों के अन्तर्गत ही दिखलाई देता है - विरज्जहिं छन्द 4, लज्जहिं छन्द 4, उत्थपई छन्द 8 करिज्जै छन्द 48. लिज्जै छन्द 48, सुपत्त छन्द 48, अच्छ छन्द 51, दज्झै छन्द 61, अरूज्झै छन्द 61, समप्पै छन्द 79, थप्पै छन्द 7, रूच्चै छन्द 79, मुच्चै छन्द 79, पुग्गल छन्द 88 ।
देशज शब्द - जैनशतक में प्रादेशिक या क्षेत्रीय शब्दावली के रूप में देशज शब्दों का प्रयोग अनेक स्थानों पर हुआ है। यथा - जिहाज (जहाज) छन्द 1, धापै (तृप्त) छन्द 1, औरें (पक्ष में, प्रति) छन्द 13, टेर (पुकार) छन्द 16, बिचारों (दीन, दुर्बल) छन्द 16, खाज (खुजली) छन्द 17, भटा (बैंगन) छन्द 18, बैठन (चारद) छन्द 20, मूढ़ (मूर्ख) छन्द 21, कानी (फूटा) छन्द 23, झोंपरी (झोपड़ी) छन्द 26, बलाय (बाधा, व्याधि) छन्द 31, भाजी (बांटना) छन्द 32, झीना (धीमा) छन्द 34. ऊनी (कम) छन्द 39. लव (थंक) छन्द 54 लोग (लोक) छन्द 64, पाहरू (चौकीदार) छन्द 68, सोर (साथी) छन्द 71, गागर (घट) छन्द 75, जनावर (जानवर, निम्न श्रेणी का पशु) छन्द 78, सूबा (राज्य) छन्द 105 |
विदेशी शब्द • भूधरदास ने जैनशतक में अरबी, फारसी आदि विदेशी भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग किया है ।
अरबी भाषा के शब्द • सलाह (संज्ञा, पुल्लिग) छन्द 19, माफिक (विशेषण) छन्द 20, खातिर (संज्ञा, स्त्रीलिंग) छन्द 27, खलास (संज्ञा, पुल्लिग) छन्द 27, खवास (संज्ञा, पुल्लिग) छन्द 33, इलाज (संज्ञा, पुल्लिग) छन्द 35,