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एक समालोचनात्मक अध्ययन
289 निशानी (संज्ञा, स्त्रीलिंग) छन्द 42, नजर (संज्ञा, स्त्रीलिंग ) 56, नाहक (विशेषण) छन्द 701
फारसी भाषा के शब्द - यार (संज्ञा, पुल्लिग) छन्द 19, शिकार (संज्ञा, पुल्लिग) छन्द 50, नाहक (विशेषण) छन्द 70 |
मुहावरों और लोकोक्तियों का सफल प्रयोग भी जैनशतक में दर्शनीय है। जिनका विवेचन पृथक् रूप से किया गया है।'
3. भूधरविलास या पदसंग्रह की भाषा - जैसा कि पूर्व में स्पष्ट किया जा चुका है कि भूधरविलास और पदसंग्रह - दो पृथक् पृथक् रचनाएँ नहीं हैं; अपितु दोनों नाम से भूधरदास के पदों को ही संग्रहीत किया गया है । अतः भूधरदास के पदसंग्रह की भाषा का विवेचन किया जाता है। कवि द्वारा रचे गये पदों की भाषा मूलत: ब्रजभाषा ही है; परन्तु वह खड़ी बोली के बहुत निकट है तथा उसमें शुद्ध संस्कृत भाषा के शब्द, (तत्सम शब्द) संस्कृत शब्दों के बिगड़े हुए रूप अर्थात् तद्भव शब्द, अरबी, फारसी आदि विदेशी भाषाओं के शब्द, राजस्थानी भाषा के शब्द तथा स्थानीय भाषा के शब्द भी मिलते हैं। पदों में वाक्ययोजना एवं पदसंघटन की दृष्टि से भाषा का प्रयोग
अति उत्तम बन पड़ा है। मुहावरे और लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषासौन्दर्य वृद्धिंगत हुआ है तथा भाषा सशक्त एवं प्रभावशील बन गई है।
तत्सम शब्द - कलत्र, दुःख, शोकावलि, लोकोत्तर, काक, गुरु, उपदेशामृतरस, क्षीर, श्रावक, सम्यग्ज्ञान आदि । ____ तद्भव शब्द - भूधरदास के पदों में ऐसे शब्दों का प्रयोग अधिक हुआ है, जिनका मूल संस्कृत भाषा में है; किन्तु निरन्तर प्रयोग के कारण जिनका रूप बदल गया है। यथा - गांठि, माथे, बोबन, सूवा, वृच्छ, आपा, मौत, वैद, पिया, सावन, मोर, थानक खांडे, हाथी, घोड़ा, दालिद आदि ।
देशज शब्द - भूधरदास के पदों में ऐसे अनेक शब्द भी प्रयुक्त हुए है, जिनका उत्स संस्कृत, प्राकृत में नहीं है वरन् उनका उद्भव अनजाना है;
- - - 1, प्रस्तुत शोध प्रबन्ध, षष्ठ अध्याय- मुहावरे एवं कहावतें 2. प्रस्तुत शोध प्रबन्ध, चतुर्थ अध्याय-रचनाओं का वर्गीकरण तथा परिचयात्मक अनुशीलन