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________________ 276 महाकवि भूधरदास : 5. आत्मा का कथन • भूधरदास देहरूपी देवल में विराजमान केवलज्ञानरूपी शुद्ध, निरंजन, चैतन्यमय एवं अविनाशी आत्मा को प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं देखो भाई ! आतम देव विराजै। इस ही हूठ हाथ देवल में, केवल रूपी राजै ॥ अमल उदास जोतिमय जाकी, मुद्रा मंजुल छाजै। मुनि जन पूजन अचल अविनाशी, गुण बरनत बुधि लाजै ॥ पर संजोग अमल प्रतिभासत, निज गुण मूल न त्याजै। जैन फटिक पाखान हेत सों, स्याम अरु दुति साजै ।। सोऽहं पद ममता सों ध्यावतें, घट ही में प्रभु पाऊँ। "भूधर” निकट निवास जासु को, गुरु बिन भरम न भाजै ।। जिसप्रकार हिरण नाभि में कस्तूरी होने पर भी उसे ढूँढने के लिए भ्रम के कारण वन-वन भटकता है। उसीप्रकार अज्ञानी प्राणी स्वयं सुखस्वरूप आत्मा होते हुए भी सुख की खोज में इधर-उधर भटकता है। भूधरदास को ऐसे अज्ञानियों पर हँसी आती है पानी में मीन पियासी रे, मोहे रह रह आवे हाँसी रे ॥ ज्ञान बिना भव वन में भटक्यो, कित जमुना किंत काशी रे।। जैसे हिरण नाभि कस्तूरी, वन-वन फिरत उदासी रे॥ 'भूधर" भरम जाल को स्थागो, मिट जाये जम की फाँसी रे ॥ 6. पापों को छोड़ने का उपदेश एवं मानव जीवन की दुर्लभता भूधरदास धर्म प्राप्ति हेतु पापों और विषयकषायों को छोड़ने का उपदेश इसप्रकार देते हैं अज्ञानी पाप धतूरा न बोय। . फल चाखन को बार भरै द्ग मरि है मूरख रोय ।। 1. अध्यात्म भजन गंगा, सं. पं. ज्ञानचन्द जैन, पृष्ठ 48 2. अध्यात्म भजन गंगा, स. प. ज्ञानचन्द जैन, पृष्ठ 50
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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