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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन ( ग ) हां लै चल री ! जहां यादवपति प्यारो | 1 नेमि निशाकर बिन यह चन्दा, तन-मन दहत सक्कल री ॥' संयोग श्रृंगार और दाम्पत्य पद्धति पर रचित पदों में भूधरदास ने हिन्दी सन्त कवियों की भाँति भगवान को "पिय" और स्वयं को "तिय” निरूपित करते हुए अलौकिक प्रेम की अभिव्यक्ति की है। इस प्रेम में विरह का दुःख भी दिखाई देता है। उदाहरणार्थ हों तो कहा करों कित जाउ सखी, अब कासौं पीर कहूँ री। भरता भीख दई गुण मानौं, जो बालम घर आवै ॥ 44+4+44+........................... -------- सुमति वधू यौं दीन दुहागन, दिन-दिन झुरत निरासा ॥ भूधर पीड प्रसन्न भये, वैसे न तिय घरवासा ॥ 4. शान्त भाव- भूधरदास की आध्यात्मिक अभिव्यक्ति में शान्तभाव का उद्रेक हुआ है। कवि ने मोक्ष को परम शान्ति का स्थान निरूपित करते हुए भगवद्भजन को उसका कारण बताया है। कवि के अनुसार भगवत्- भजन में ही स्थायी शान्ति है । कवि ने अध्यात्म भाव के निरूपण में संसार शरीर एवं भोगों की अनित्यता, अशरणता, निःसारता, दुःखरूपता आदि बतलाकर निर्वेद भाव को उत्पन्न करने का प्रयास किया है यथा भगवन्त भजन क्यों भूला रे । यह संसार रैन का सुपना, तन धन वारि बबूला रे ॥ इस जीवन का कौन भरोसा, पावक में तृण पूला रे । काल कुदार लिये सिर ठाड़ा, क्या समझे मन फूला रे ।। लूला रे । मूला रे ।। 275 स्वास्थ साधे पांव पांव तू परमारथ को दुःख कहु कैसे सुख पावे प्राणी, काम करै मोह पिशाच छल्यो मति मोरे, निज कर कन्य वसूला रे । भज श्री राजमतीवर "भूधर" दो दुरमति सिर धूला रे ॥ 2. जैन पद संग्रह, तृतीय भाग 29 1. भूधरविलास पद 48 3. भूधरविलास पद 18
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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