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________________ 274 महाकवि भूधरदास : आज वियोग कुमति सौतनि कौं, मेरे हरष अनंत। भूधर पति एही दिन दुर्लभ-सुमति सखी बिहसंत ॥ एक अन्य होली पद में कवि ने आत्मारूपी पुरुष एवं सुबुद्धिरूपी किशोरी के बीच होली खेलने का चित्रण करते हुए दूसरे प्रकार का रूपक प्रस्तुत किया है। वह पद निम्नलिखित है अहो दोऊ रंग भरे खेलत होरी अलख अमरति की जोरी ।। इतमैं आतम राम रंगीले, उतमैं सुबुद्धि किसोरी। . या के ज्ञान सखा संग सुन्दर, बाकै संग समता गौरी ॥ सुचि मन सलिल दयारस केसरि, उदै कलस में घोरी। पूरव बंध अबीर उड़ावत दान गुलाल भर झोरी।' इसीप्रकार कवि ने आध्यात्मिक विवाह के अन्तर्गत चेतन को पत्ति तथा सुमति को पत्नी निरूपित करते हुए प्रेम या विवाह का वर्णन किया है। नेमिनाथ और राजुल के प्रेम को कवि ने अत्यन्त स्वच्छ, स्वस्थ मर्यादित एवं भारतीय संस्कृति के अनुरूप प्रस्तुत किया है— देख्यो री ! सखी नेमिकुमार ।। नैननि प्यारो नाथ हमारो, प्रान जीवन प्रानन आधार ।' इसी माधुर्य भाव की पृष्ठभूमि में राजुल द्वारा अपने विरह को व्यक्त किया गया है। इस विरह वर्णन में जायसी के विरह वर्णन की तरह "ऊहा" के दर्शन नहीं होते हैं । उदाहरणार्थ(क) मां विलंब न लाव पठाव तहारी, जैह जगपति पिय प्यारो॥ और न मोहि सुहाय कछु अब दीसै जगत अंधारो री॥ (ख) नेमि बिना न रहे मेरो जियरा ।। हेर री हेली तपत उर कैसी, लावत क्यों निज हाथ न नियरा ॥ 1. हिन्दी पद संग्रह, साहित्य शोध विभाग, श्री महावीरजी, पृष्ठ 159 2. हिन्दी पद संग्रह, साहित्य शोध विभाग, श्री महावीरजी, पृष्ठ 149 3. पूधरविलास पद 14 4, वही पद 13 5. वही पद 20
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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