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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 277 किंचित् विषयनि के सुख कारण, दुर्लभ देह न खोय । ऐसा अवसर फिर न मिलैगा, मोह नींद मत सोय ॥' साथ ही वे मनुष्य जन्म एवं श्रावक कुल को महा से महा दुर्लभ बताते हुए अनेक उदाहरणों द्वारा व्यर्थ न खोने की सलाह देते हैं ऐसे श्रावक कुल तुम पाय वृथा क्यों खोबत हो । कठिन-कठिन कर नरभव पायो, तुम लेखो आसान। धर्म विसारि विषय में राची, मानी न गुरु की आन ॥' 7. मन की पवित्रता - 17 वीं -18 वीं शताब्दी में जैनधर्म में भट्टारक प्रथा के कारण अनेक क्रियाकाण्ड सिर उठा रहे थे। भूधरदास ने उनका खण्डन करते हुए मन की पवित्रता या अन्तर की उज्ज्वलता पर बल दिया है। यदि अन्त:करण विषय-कषाय रूपी कीचड़ से लिप्त है तो जप-तप, तीर्थयात्रा, व्रतादि का पालन करना, आगम का अभ्यास करना आदि व्यर्थ है। भूधरदास ने मन की पवित्रता पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है भाई ! अन्तर उज्जवल करना रे।। कपट कृपान तजै नहिं तबलौं, करनी काज न सरना रे ।। जप-तप तीरथ यज्ञ व्रतादिक, आगम अर्थ उचरना रे। विषय-कषाय कोच नहिं धोयो, यों ही पचि-पचि मरना रे।' 8. अभिमान का निषेध - भूधरदास तन, धन, यौवन, जीवन आदि को क्षणभंगुर मानकर उनके अभिमान का निषेध करते हुए कहते हैं(क) हे नर निपट गैवार, गरब नहिं कीजै रे।। झूठी काया झूठी माया छाया ज्यों लखि लीजे रे। कै छिन सांझ सुहागुरु जीवन, के दिन जग में जीजै रे॥ 1. अध्यात्म मजन गंगा, सं. पं. ज्ञानचन्द जैन, पृष्ठ 49 2, अध्यात्म भजन गंगा, सं.पं.ज्ञानचन्द जैन, पृष्ठ 51 3. अध्यात्म भजन गंगा, सं.पं. ज्ञानचन्द जैन, पृष्ठ 50 4. अध्यात्म भजन गंगा, सं. पं. ज्ञानचन्द जैन, पृष्ठ 51
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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