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________________ 272 महाकवि पूघरदास : (5) अब नित नेमि नाम भजौ। सच्चा साहिब यह निज जानौ, और अदेव तजौ ॥' (च) जपि माला जिनवर नाम की। भजन सुधारस सों नहीं धोई, सो रसना किस काम की॥ (छ) और सब थोथी बातें, भज ले श्री भगवान । प्रभु बिन पालक कोई न तेरा, स्वारथमीत जहान ।' कवि द्वारा रचित बधाई ' और प्रभाती पदों में कवि का विनय भाव एवं दास्यभाव अत्यन्त मुखर हो उठा है। कवि ने आराध्य की अनन्यता, शरणागत-वात्सलता, अधम उद्धारकाः, पतितपावनता आदि के काम में जाने इष्ट की महिमा तथा अपनी दीनता, हीनता, लघृता, याचना आदि के रूप में अपना विनय एवं दास्ये भाव व्यक्त किया है। साथ ही नाम-जप के द्वारा लौकिक समृद्धि के अतिरिक्त अलौकिक सिद्धि ( मोक्ष प्राप्ति) की बात भी कही है। भूधरदास के इन सब कथनों पर जैनेतर भक्ति का यत्किंचित प्रभाव परिलक्षित होता है। फिर भी जैनधर्म के आराध्य की वीतरागता पर थोड़ी भी आँच नहीं आती; क्योंकि व्यवहार नय के द्वारा इसप्रकार के कथन करने में कोई दोष नहीं आता। निश्चय नय से भगवान किसी के कर्ता, धर्ता, हर्ता, हैं ही नहीं, मात्र उपचार में उनमें कर्तृत्व का आरोप किया गया है। सख्य और दास्य भाव की भक्ति के अतिरिक्त भूधरदास के पदों में अनुरागमूलक भक्ति भी दिखाई देती है। भूधरदास अपने भगवान को देखकर ऐसे विमुग्ध हुए कि भव-भव में भक्ति की याचना करने लगे भरनयन निरखै नाथ तुमको, और बांछा ना रही। मम सब मनोरथ भये पूरण, रंक मानों निधि लही॥ अब होऊ भव-भव भक्ति तुम्हारी, कपा ऐसी कीजिए। कर जोर "भूधरदास" बिनदै, यही वर मोहि दीजिये ।।" 1. भूषरविलास पद 36 3.वही पद 44 5. भूषविलास पद 51 2. कही पद 43 4. जैन पद संग्रह, तृतीय भाग, पद 31 6. जैनपद संग्रह, तृतीय पाग,पद 71
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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