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________________ 258 महाकवि भूधरदास : बचपन तो खेलकूद में यों ही चला जाता है, उस समय हिताहित का विचार ही नहीं रहता है और युवावस्था स्त्री के मोह में, घर गृहस्थी के कार्यों में, धन कमाने आदि में निकल जाती है । अब वृद्धावस्था के सूचक सफेद बाल आने पर सचेत हो जाओ। कवि इस प्रकार सम्बोधित करता है बालपने बाल रह्यौ पीछे गहभार वली, लोकलाज काज बाँध्यौ पापन को दर है। आपनों अकाज कीनौं लोकन में जस लीनौं, परभौ विसार दीनौं विषवश जेर है। ऐसे ही गई विहाय, अलप-सी रही आय नर-परजाय यह आंथे की बटेर है। आये सेत भैया अब काल है अवैया अहो, जानी रे सया. तेरे अजौं हू अंधेर है।' बालपनै न संभार सक्यौ कछु, जानत नाहिं हिताहित ही को। यौवन वैस वसी वनिता उर, मैं नित राग रहो लक्षमी को॥ यौं पन दोई विगोड़ दये नर, डारत क्यों नरकै निज जी को। आये हैं सेत अजौं शठ ! चेत, गई सुगई अब राख रही को॥ इसीप्रकार के प्रवाह, विदग्धता, कल्पना, अलंकार विधान एवं लोकोक्तियों का प्रयोग करते हुए कवि ने एक-दो नहीं, अपितु कई कवित्त लिखे हैं । वृद्धावस्था में मनुष्य लकड़ी लेकर क्यों चलता है ? क्यों काँपता है ? इसकी यह सुकवि. बड़ी विचित्र कल्पना करता है अहो इन आपने अभाग उदै नाहिं जानी, वीतराग-वानी सार दयारस-भीनी है। जोबन के जोर थिर-जंगम अनेक जीव, जानि जे सताये कछु करूला न कोनी है। 1. जैनशतक छन्द 28 2. जैनशतक छन्द 29
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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