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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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बाकी अब कर रही ताहि तू विचार सही, कारज की बात यही नीकै मन लाय रे। खातिर मै आवै तो खलासी कर इतने मैं,
भावै फैसि फंदबीच दीनौ समुझाय रे ।' इसलिए कवि रोग, बुढ़ापा एवं मृत्यु आने के पहले ही आत्महित करने की प्रेरणा देता है
जौलौं देह तेरी काहू रोगसौं न घेरी जौलौं, अरा नाहि नेरी जासों पराधीन परिहै। जौलौं जमनामा बैरी देय ना दमामा जौलौं, मानै कान रामा बुद्धि आई ना बिगरि है॥ तौलौं मित्र मेरे निज कारज सँवार ले रे, पौरुष थकेंगे फेर पीछे कहा करि है। अहो आग आयै जब झोपरी जरन लागी,
कुआ के खुदाये तब कौन काज सरि है ।। साथ ही मित्रों के द्वारा अपनी कुशलता पूछे जाने पर वह इसप्रकार बतलाता है
जोई दिन कटै सौई आयु में अवसि घदे बूँद बूँद बीते जैसें अंजुली को जल है। देह नित क्षीन होत, नैन तेज हीन होत, जोबन मलीन होत, छीन होत बल है। आवै जरा नेरी, तकै अंतक अहेरी, आवै, पर भौ नजीक, जात नरभौ निफल है। मिलकै मिलापी जन पूँछत कुशल मेरी, ऐसी दशा माही मित्र काहे की कुशल है।'
1. जेनशतक छन्द 27
2. वही छन्द 26
3. वहीं छन्द 37