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महाकवि भूधरदास :
पार्श्वपुराण की कथा का वर्णन करने के पीछे कवि का एक अन्य उद्देश्य शुभाशुभ कर्म अर्थात् पुण्य पाप का फल बतलाना तथा जीव को आत्म-हित की शिक्षा अर्थात् धर्म सेवन की प्रेरणा देना भी है :
"सुन श्री पार्श्वपुराण, जान शुभाशुभ कर्म फल।
सुहित हेत उर आन, जगत जीव उद्यम करो ।। "इस ही अखासिन्यु सों पुण्य पाप पर भाव।
संसारी जन भोगवे, स्वर्ग नरक की आव ॥ "धर्म पदारथ धन्य जग, जा पटतर कछु नाहि ।
दुर्गति वास बचाय कै, धरै स्वर्ग शिव माहिं ।। पार्श्वनाथ के चरित्र का वर्णन करने के साथ-साथ कवि का एक उद्देश्य जैन सिद्धान्तों का वर्णन करना भी है। इसीलिये उसने पार्श्वनाथ की दिव्यध्वनि द्वारा उपदेश दिये जाने के रूप में जैन सिद्धान्त के सात तत्त्व, छह द्रव्य, पंचास्तिकाय, नौ पदार्थ आदि क विस्तार से वर्णः दिन हैगा उस सजन जानने योग्य भी कहा है। कवि के शब्दों में :
"छहों दरब पंचासतिकाय सात तत्त्व नौ पद समुदाय। जानन जोग जगत में येह जिनसों जाहि सकल सन्देह ।।
कवि ने अन्तिम अधिकार में पूर्णतः जैन सिद्धांतों का विवेचन किया है। यह अधिकार एक मात्र इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये लिखा गया है।
पार्श्वपुराण का एक उद्देश्य धर्म प्रभावना करना भी है। कवि के इस उद्देश्य की पूर्ति पार्श्वनाथ द्वारा बताये हुए मार्ग पर अनेक लोगों के चलने से हो जाती है। पार्श्वनाथ के उपदेशों से अनेक जीव संसार से विरक्त होकर मोहान्धकार का नाश कर मुक्ति मार्ग प्राप्त करते हैं :
"वचन किरण सौ मोह तम मिटयो महादुख दाय। बैरागे जग जीव बहु काल लब्यि बल पाय ।।
1. पार्श्वपुराण अधिकार 9 पृष्ठ 95 2 से 3 पार्श्वपुराण अधिकार 9 पृष्ठ 95 4. पार्श्वपुराण अधिकार 9 पृष्ठ 77 5. पार्श्वपुराण अधिकार 9 पृष्ठ 91