________________
एक समालोचनात्मक अध्ययन
पार्श्वनाथ के उपदेश से किसी ने मुक्ति प्राप्त की, कोई नग्न होकर दिगम्बर मुनि बन गया, किसी ने श्रावकव्रत धारण किये तथा किसी ने सम्यग्दर्शन प्राप्त किया। देव, मनुष्य, तिर्यंच आदि सभी यथायोग्य धर्म को प्राप्त हुए । ' इस प्रकार पार्श्वनाथ के द्वारा महती धर्म प्रभावना हुई। यह धर्म प्रभावना करना भी कवि का उद्देश्य है :
:
"प्रभु उपदेश पोत चढ़ि धीर, "तुम वानी कूंची कर धार,
अब सुख सों जेहे जन तीर 112 अब भवि जीव लहै पयसार ॥
3
243
इस प्रकार हम कह सकते है कि भूधरदास के पार्श्वपुराण" की रचना के अनेक उद्देश्य हैं। एक ओर जैन तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का चरित्र चित्रण करना, दूसरी ओर जैन सिद्धान्तों का परिचय कराते हुए संसार, शरीर, भोगों की अनित्यता, असारता और दुःखमयता बतलाकर मोक्षसुख की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करना । इसमें ही विश्वव्यापी समस्या के समाधान रूप मोह-राग-द्वेषात्मक या मिथ्यादर्शन - ज्ञान चारित्रात्मक वृत्तियों के शमन कराने व सम्यग्दर्शनज्ञान- चरित्र प्राप्त कराने का उद्देश्य भी गर्भित है ।
कवि ने क्रोध व वैर की परम्परा को जन्म जन्मान्तर तक बतलाकर उसका फल अनेक कुयोनियों तथा नरक गति में दुःख की प्राप्ति बतलाई है तथा क्षमा व समता का फल स्वर्ग तथा मोक्ष सुख बतलाया है। साथ ही पुण्य पाप का फल अथवा शुभ-अशुभ कर्मों का फल बतलाकर धर्म के मार्ग में लगाना भी कवि का एक अन्य उद्देश्य है ।
कवि "पार्श्वपुराण" की रचना करके सम्मान एवं सांसारिक सुख की कामना नहीं करता अपितु उसने भक्ति के वश में होकर निज-पर के उपकार करने हेतु धर्मभावना से "पार्श्वपुराण" की रचना की है।
1. पार्श्वपुराण अधिकार 9 पृष्ठ 95
2. पार्श्वपुराण अधिकार 7 पृष्ठ 64 3. पार्श्वपुराण अधिकार 7 पृष्ठ 64
इसप्रकार भूधरदास द्वारा रचित महाकाव्य " पार्श्वपुराण" में कथानक की अनेक विशेषताएँ, पात्रों का चरित्र चित्रण, प्रकृति का निभिन्न रूपों में वर्णन, रस निरूपण तथा उद्देश्य कथन किया गया है और इन्हीं सबके आधार पर यहाँ महाकाव्य पार्श्वपुराण का भावपक्षीय अनुशीलन किया गया है।